Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 1
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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प्रमेयकमलमार्त्तण्डे
तब किसी इन्द्रिय के बिना सिर्फ मनसे घट नहीं, ऐसा ज्ञान होता है वह प्रभावप्रमाण है, सो इसमें प्रश्न होता है कि वह जो भूतल दिखाई पड़ता है वह घट रहित दिखता है या सहित ? घट रहित दिखता है ऐसा कहो तो वह प्रत्यक्षप्रमारण से ही दिखता है अर्थातु प्राँख से देखकर ही घट नहीं, ऐसा ज्ञान हुआ फिर प्रभावप्रमाण काहे को माने ? तथा घट सहित भूतल देखा है तो उस घट के प्रभाव को प्रभाव प्रमाण कर नहीं सकता । प्रत: जैसे वस्तुका अस्तित्व प्रत्यक्ष आदि प्रमाणसे जाना जाता है वैसे नास्तित्व भी प्रत्यक्षादि से जाना जाता है ऐसा मानना चाहिये । कभी यह अभाव प्रत्यभिज्ञानका विषय भी होता है तथा अनुमान का भी । प्रभाव प्रमाणके तीन भेद भी इन्हीं प्रत्यक्षादि प्रमाणों में शामिल होते हैं, देखिये प्रमाणपंचकाभाव, तदन्यज्ञान और ज्ञान निर्मुक्त प्रात्मा इन तीन प्रभाव प्रमाणों में से प्रमाणपंचकाभाव तो निःस्वभाव होनेसे प्रमाण का विषय ही नहीं है तथा यह नियम नहीं है कि जहां पाचों प्रमाणप्रवृत्त न हों वहां प्रमेय ही न हो । दूसरा प्रभाव प्रमाण तदन्य रूप है तद् मायने घट उससे अन्य जो भूतल उसका ज्ञान सो ऐसा ज्ञान तो प्रत्यक्ष से ही हो जाता है अतः दूसरा अभाव प्रमाण का भेद भी कैसे बने । तथा तीसरा प्रभावप्रमाण ज्ञान रहित आत्मा है, यह तो बिलकुल गलत है ज्ञान रहित आत्मा कभी होता ही नहीं यदि श्रात्मा ज्ञान रहित हो जाय तो प्रभाव को भी कैसे जानेगा ? परवादीके इतरेतराभाव प्रादि के लक्षण भी ठीक नहीं है और लक्षण सिद्ध हुए बिना लक्ष्य सिद्ध
नहीं होता है । आपके यहां इतरेतराभावको वस्तु से सर्वथा भिन्न माना है अतः उसके द्वारा वस्तुओं की आपस में व्यावृत्ति कैसे हो ? इतरेतराभाव से घट अन्य पटादि पदार्थों से व्यावृत्त होता है सो खुद इतरेतराभाव दूसरे प्रभावों से कैसे व्यावृत्त होगा ?
अन्य इतरेतराभाव से कहे तो अनवस्था आती है । तथा इतरेतराभाव से घटमें पटका निषेध किया जाता है या पटत्वका या दोनों का निषेध किया जाता है इस बात को आपको बतलाना होगा, घट में पटका निषेध करता है ऐसा कहो तो पट रहित घट में या पट सहित घट में ? पट रहित घट में इतरेतराभाव पटका निषेध करता है ऐसा कहो तो यह बताओ कि घटका पट रहितपना और इतरेतराभाव इनमें क्या भेद है ? कुछ भी नहीं । तथा घट में पट नहीं है, ऐसा जाना जाता है वह घट में पटके स्वरूप को जानने के बाद जाना जाता है या बिना जाने ? दोनों तरह की मान्यता में बाधा आती है ।
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