Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 1
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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अभावस्य प्रत्यक्षादावन्तर्भाव:
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इतरेतर भाव घट को अन्य पटादि से पृथक् करता है सो जगत के सभी पदार्थों से पृथक् करता है या कुछ थोड़े पदार्थों से पृथक् करता है सभी से व्यावृत्त करना तो शक्य ही नहीं क्योंकि वस्तु तो अनंत है उनको हटाने में पार हो नहीं आयेगा । कुछ थोड़े पदार्थों के हटाने से तो काम नहीं चलेगा, क्योंकि जो हटाने से शेष बचे पदार्थ हैं उनका तो घट में निषेध नहीं हुआ ? अतः उनरूप घट हो जायेगा। इस तरह मीमांसक का इतरेतराभाव का स्वरूप गलत है । जैन के यहां तो इतरेतराभाव हर वस्तु में स्वतः माना है अर्थात् वस्तुमें ऐसी एक विशेषता या धर्म है कि जिसके कारण वह वस्तु अपने को अन्य अनंत सजातीय वस्तु से हटाती है अतः जैनके यहां उपर्युक्त दोष नहीं आते हैं।
परवादी के यहां प्रागभावका स्वरूप भी गलत बताया है, वह भी घटादि पदार्थों से पृथक् रहकर नास्तिता का बोध कराता है “घट उत्पत्ति के पहले नहीं था" यह प्रागभावका काम है मतलब यह सत से विलक्षण असत का ही ज्ञान कराता है, ऐसा
आप एकांत मानते हैं किन्तु जो सत से विलक्षण हो, वह असत का ही विषय हो सो यह बात नहीं है । देखो प्रागभाव में प्रध्वंस नहीं ऐसा कहते हैं, यहां सत विलक्षण ज्ञान तो है, किन्तु वह असत विषय वाला नहीं है तथा वह प्रागभाव को अनादि अनंत माने तो कार्य की उत्पत्ति ही नहीं होगी, अनादि सान्त माने तो एक घटके उत्पन्न होने में प्रागभाव का अभाव होते ही सारे जगत के कार्य उत्पन्न हो पड़ेगे ? क्योंकि प्रागभाव एक है । प्रागभावको सादि अनंत माने तो घट उत्पत्ति के पहले भी घट दिखाई देगा क्योंकि उसके विरोधी प्रागभावका अभाव है, सादि सांत कहे तो यही दोष है। जितने कार्य उतने प्रागभाव माने तो अनंत प्रागभाव स्वतंत्र रहते हैं कि पदार्थ में रहते हैं यह बताना होगा ? स्वतंत्र रहते हैं तो प्रागभाव भाव स्वभाव वाले हुए ? जैसे कालादि द्रव्य हैं वैसे प्रागभाव भी सद्भाव रूप हुए ( किन्तु यह आपको इष्ट नहीं है ) प्रागभाव भाव पदार्थ के आधीन है ऐसा कहा जाय तो प्रश्न होगा कि उत्पन्न हुए पदार्थ के अाधीन हैं या आगे उत्पन्न होने वालों के ? उत्पन्न हुए पदार्थ में प्रागभाव रहता है ऐसा कहो तो बनता नहीं, क्योंकि प्रागभाव का प्रभाव करके ही पदार्थ उत्पन्न हुए हैं । आगे उत्पन्न होने वाले के आधीन माने तो कैसे बने क्योंकि जो खुद हैं नहीं वह अन्य को क्या प्राश्रय देगा ? अतः जिसके अभाव होने पर नियम से कार्य होता है वह प्रागभाव है जैसे कि घट उत्पत्ति के पहले स्थास कोष आदि अवस्था
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