Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 1
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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प्रमेयकमलमार्तण्डे
प्राक्, उत्तरकालं वा ? आद्यविकल्पे भ्रान्तज्ञानेपि प्रमाणत्वसङ्गः। द्वितीयविकल्पे तन्निश्चयस्याकिञ्चित्करत्वं तमन्तरेणैव प्रवृत्तेरुत्पन्नत्वात् । न च बाधकाभावनिश्चये किञ्चिन्निमित्तमस्ति । अनुपलब्धिरस्तीति चेत्कि प्राक्काला उत्तरकाला वा ? न तावत्प्राक्काला; तस्याः प्रवृत्त्युत्तरकालभाविबाधकाभावनिश्चयनिमित्तत्वासम्भवात् । न ह्यन्यकालानुपलब्धिरन्यकालमभावनिश्चयं च विदधात्यतिप्रसङ्गात् । नाप्युत्तरकाला, प्राक् प्रवृत्तेः 'उत्तरकालं बाधकोपलब्धिर्न भविष्यति' इत्यसर्व विदा निश्चेतुमशक्यत्वेनासिद्धत्वात् । प्रवृत्त्युत्तरकालभाविनिश्चयमात्रनिमित्तत्वे न किञ्चित्फलम् तस्याकिञ्चित्करत्वात् ।
[अर्थक्रिया] हो चुकने पर बाधक का अभाव जानना बेकार है प्रवृत्ति के लिये ही तो बाधकाभाव जानना था कि यह जो ज्ञान हुआ है सो इसके जाने हुए विषय में बाधक कारण तो नहीं है ? इत्यादि किन्तु जब उस ज्ञान के विषय में पुरुषकी प्रवृत्ति हो चुकी और उस विषय की सत्यता भी निर्णीत हो चुकी तब बाधकाभावके निश्चय से कुछ फायदा नहीं, क्योंकि बाधकका अभाव निश्चित करने के लिये कोई कारण चाहिये । यदि कहा जाय कि अनुपलब्धि कारण है अर्थात् इस विवक्षित प्रमाण में बाधा नहीं है, क्योंकि उस बाधाकी अनुपलब्धि है, इस प्रकार अनुपलब्धि को बाधकाभावके निश्चयका कारण माना जाय? इस पर पुनः प्रश्न होता है कि-वह अनुपलब्धि सम्यग्ज्ञान में प्रवृत्ति से पहले होती है या पीछे होती है ? पहले होती है कहो तो बनता नहीं क्योंकि वह प्रवृत्ति के उत्तर कालमें होने वाले बाधक के प्रभाव के निश्चय का निमित्त नहीं हो सकती है । देखिये अन्यकाल में हुई वह अनुपलब्धि अन्यकाल में होनेवाले बाधक के अभाव का निश्चय कैसे करा सकती है यदि ऐसा माना जावे तो अति प्रसंग आवेगा, अर्थात् जहां वर्तमान में घट की अनुपलब्धि है वहां वह अन्य समय में भी उसके प्रभाव को करने वाली हो जावेगी किन्तु ऐसा तो होता नहीं है अतः अन्यकालीन अनुपलब्धि अन्यकाल के बाधकाभाव को नहीं बता सकती यह निश्चित हुआ। उत्तरकालीन अनुपलब्धि से बाधकाभावका निश्चय होना भी अशक्य है, प्रवृत्ति के पहले जैसे बाधकाभाव की अनुपलब्धि है वैसे ही आगे उत्तर काल में भी बाधक उपस्थित नहीं होगा, ऐसा निश्चित ज्ञान तो असर्वज्ञों को होना अशक्य है । तथा यदि प्रवृत्ति हो जाने के बाद बाधकाभाव का निश्चय अनुपलब्धि से हो भी जाय तो उससे कोई लाभ होनेवाला नहीं है वह तो अकिंचित्कर ही रहेगी । भावार्थ - मीमांसक इन्द्रियों के गुणादि से ज्ञानों में प्रमाणता आती है ऐसा नहीं मानते किन्तु बाधककारण
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