Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 1
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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प्रभावस्य प्रत्यक्षादावन्तर्भाव:
५७१
सम्प्रधार्यम्-किं घटरूपतया, अन्यथा वा ? यदि घटरूपतया; तहि सकलघटव्यक्तिभ्यो व्यावत मानो घटो घटरूपतामादाय व्यावर्तत इत्यायातम् अघटत्वमन्यासां घटव्यक्तीनाम् । अथाघटरूपतया; तत्किमघटरूपता पटादिवद् घटेप्यस्ति ? तथा चेत् ; तहि यो व्यावर्त्तते घटान्तरादघटत्वेन घटस्तस्याघटत्वं स्यात् । तच्च विप्रतिषिद्धम्-यद्यघटो घटः, कथं घट: ? तस्मान्नार्थादर्थान्तरमभावः ।
ननु चाभावस्यार्थान्तरत्वानभ्युपगमे कथं तन्निमित्तको व्यवहारः ? तथाहि-किं घटावष्टब्धं भूतलं घटाभावो व्यपदिश्यते, तद्रहितं वा ? प्रथमपक्षे प्रत्यक्षविरोधः। द्वितीयपक्षे तु नाममात्रं
जायेंगे ? दूसरी बात अघट रूप से व्यावृत्त होता है, ऐसा माने तो क्या पट, गृह, वृक्ष आदि पदार्थों के समान घट में भी अघट रूपता है ? यदि है तो जो घट अन्य घट जाति से अघटत्व के द्वारा व्यावृत्त होता है वह स्वयं अघट रूप बन गया सो यह विरुद्ध बात है अर्थात् यदि घट स्वयं अघट है तो वह किस प्रकार घट नाम पायेगा ? अतः यह सिद्ध हुआ कि पदार्थ से पृथक् कोई अभाव नामा वस्तु नहीं है । वह पदार्थ रूप ही है।
मीमांसक-यदि अभाव को भिन्न पदार्थरूप नहीं माना जाय तो उस अभाव के निमित्त से होनेवाला लोक व्यवहार कैसे सिद्ध होगा, अर्थात् "यह नहीं है इसका अभाव है" इत्यादि व्यवहार कैसे बनेगा ? हम आप जैन से पूछते हैं कि घट से व्याप्त भूतल को घट का अभाव कहते हैं अथवा घट से रहित भूतल को घटका अभाव कहते हैं ? प्रथम पक्ष-घट से व्याप्त भूतल को घट का प्रभाव कहेंगे तो प्रत्यक्ष से ही विरोध दिखाई दे रहा है। दूसरा पक्ष-घट रहित भूतल को घट का अभाव कहते हैं तो नाम मात्र का भेद हुआ, जैन प्रभाव को घट रहित नाम देते हैं और हम घटाभाव विशिष्टत्व नाम रखते हैं ?
जैन-यह कथन गलत है, घट से अवष्टब्ध भूतल को घटका प्रभाव माने तो प्रत्यक्ष विरोध आता है ऐसा ओ कहा है, उसमें हमारा यह प्रश्न है कि भूतल घटाकार है क्या ? जिससे “घट नहीं होता है" इस तरह कहने में प्रत्यक्ष विरोध आवे ।
भावार्थ-घट से व्याप्त भूतल को घटाभाव कहते हैं ऐसा कहें तो क्या बाधा है ? घट और भूतलका तादात्म्य तो है नहीं, भूतल तो घटाकार है नहीं और इसीलिये तो यह भूतल घट नहीं है ऐसा कहा जाता है । अभिप्राय यह है कि घट से
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