Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 1
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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अभावस्य प्रत्यक्षादावन्तर्भावः
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यदप्यभिहितम्-'प्रागभावादिभेदाच्चतुर्विधश्वाभावः' इत्यादि; तदप्यभिधानमात्रम् ; यता स्वकारणकलापात्स्वस्वभावव्यवस्थितयो भावाः समुत्पन्ना नात्मानं परेण मिश्रयन्तितस्यापरत्वप्रसङ्गात् । न चान्यतोऽज्या(तो व्या)वृत्तस्वरूपाणां तेषां भिन्नोऽभाऽवांशः सम्भवति । भावे वा तस्यापि पररूपत्वाद्भावेन ततोपि व्यावर्तितव्यमित्यपरापराभावपरिकल्पनयानवस्था । अतो न कुतश्चिद्भावेन व्यावत्तितव्यमित्येकस्वभावं विश्वं भवेत्, परभावाभावाच्च व्यावर्त्तमानस्यार्थस्य पररूपताप्रसङ्गः।
यदि चेतरेतराभाववशाद् घटः पटादिभ्यो व्यावर्तेत, तीतरेतराभावोपि भावादभावान्तराच्च प्रागभावादे. किं स्वतो व्यावर्तेत, अन्यतो वा ? स्वतश्चेत् ; तथैव घटोप्यन्येभ्यः किन्न व्यावर्तेत ?
प्रभाव रूप होता है, वह उसी भाव या अभाव रूप हेतु के द्वारा किया जाता है जैसे भावरूप मिट्टीसे भावरूप घट किया जाता है, अभाव तो अभावरूप हुआ करता है अतः उसको अभाव के द्वारा ही किया जाता है ? यदि कहा जाय कि इस तरह की मान्यता में प्रत्यक्ष बाधा आती है तो "अभाव प्रमाण द्वारा अभावांश ग्रहण किया जाता है" ऐसा मानने में भी प्रत्यक्ष बाधा आती है । उभयत्र समान बात है । इसप्रकार अभाव को जानने के लिए प्रत्यक्षादिप्रमाणसे पृथक कोई एक प्रमाण चाहिये ऐसा मीमांसक का कहना खंडित हुआ।
मीमांसकने यह भी कहा था कि प्रागभाव आदि के भेद से अभाव चार प्रकार का है इत्यादि । सो यह केवल कथन मात्र है । क्योंकि अपने अपने स्वभावमें स्थित जो भाव हैं वे अपने कारणसमूह से उत्पन्न हुए हैं वे अपने को अन्य से मिश्रित नहीं करते, अन्यथा वे पर भी अन्य परसे मिश्रित होंगे ? परसे व्यावृत्तिस्वरूपवाले पदार्थों का अभावांश उनसे भिन्न नहीं रहता है, उन्हीं में रहता है।
यदि पदार्थोंसे अभावांश भिन्न रहना संभव है तो वह परपदार्थ रूप हुआ ? फिर वह परपदार्थ भी सद्भाव रूप होगा, अत: वहां से उस अभाव को हटाना पड़ेगा, इस तरह से तो अनवस्था दोष आवेगा । इस अनवस्था की आपत्ति से बचने के लिये पदार्थ को किसी से भी व्यावृत्त स्वरूप नहीं माना जाय तो सारा विश्व एक स्वभाव वाला हो जायगा और इस तरह से पर भावका अभाव होनेसे व्यावर्तमान जो पदार्थ है उसमें पररूपता का प्रसंग प्राप्त हो जावेगा। यदि घटा इतरेतराभाव द्वारा पट आदि अन्य वस्तुओं से व्यावृत्त होता है ऐसा मानते हैं तो प्रश्न होता है कि इतरेतराभाव से जैसे घट से पट और पट से घट व्यावृत्त होता है वैसे ही स्वयं इत
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