Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 1
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
View full book text
________________
५६४
प्रमेयकमलमार्तण्डे
___ यच्चान्यदुक्तम्-"मेयो यद्वदभावो हि" इत्यादि; तत्र 'भावरूपेण प्रत्यक्षेण नाभावो वेद्यते' इति प्रतिज्ञा अन्यासंसृष्टभूतलग्राहिणा प्रत्यक्षेण निराक्रियते अनुष्णाग्निप्रतिज्ञावत् । 'भावात्मके यथा मेये' इत्याद्यप्ययुक्तम् ; अभावादपि भावप्रतीतेः; यथा गगनतले पत्रादीनामधःपाताभावाद्वायोरिति । भावाचाग्न्यादेः शीताभावस्य प्रतीतिः सकलजनप्रसिद्धा । 'यो यथाविधः स तथाविधेनैव गृह्यते' इत्यभ्युपगमे चाभावस्य मुद्गरादिहेतुत्वाभावः स्यात् । शक्यं हि वक्त म्-यो यथाविधः स तथाविधेनैव क्रियते यथा भावो भावेन, अभावश्चाभावः, तस्मादभावेनैव क्रियते । प्रत्यक्षबाधा चान्यत्रापि समाना ।
नहीं होता [ यहां पर सिर्फ इन्द्रिय और मन को ही ज्ञानका हेतु माना है वह लौकिक दृष्टिसे या मति और श्रुतज्ञान की अपेक्षा से माना है, आगे के अवधिज्ञानादिक अन्य मत में नहीं माने हैं, अतः उसको गौण करके यह कथन किया है ] अभाव प्रमाण के विषय में जो यह कारिका "मे यो यद्वदभावो हि" इत्यादि प्रस्तुत की थी वह भी ठीक नहीं है, इस कारिकाका प्राशय भी पूर्वोक्त रीत्या निराकृत हुआ समझना चाहिये ।
आप मीमांसकों की यह प्रतिज्ञा [ या हठाग्रह ] है कि सद्भावरूप प्रत्यक्ष प्रमाण के द्वारा प्रभाव नहीं जाना जाता है सो यह अग्नि ठण्डी है, इस प्रतिज्ञा के समान निराकृत हो जाती है, क्योंकि अन्य से असंसृष्ट जो भूतल है उसको जाननेवाला प्रत्यक्ष प्रमाण है यह सिद्ध हो चुका है । "भावात्मके यथा मेये' इत्यादि वाक्यों में यह सिद्ध करनेका प्रयास किया था। सद्भावात्मक प्रमेयको सद्भावात्मक प्रमाण जानता है और प्रभावात्मक अप्रमेयको अभावात्मक प्रमाण जानता है सो भी अयुक्त सिद्ध हो चका है । देखिये ! अभावसे भी सद्भावकी प्रतीति होती है ।
जैसे-आकाश में वायु है, क्योंकि पत्त आदि का नीचे गिरने का अभाव है इत्यादि अनुमानमें प्रभावात्मक हेतु से सद्भावात्मक पदार्थ की प्रतीति होती हुई देखी जाती है, तथा कभी भाव हेतु से भी अभाव जाना जाता है, जैसे शीतका अभाव है क्योंकि अग्निका सद्भाव है । इस तरह भाव हेतु से प्रभाव की और अभावरूप हेतुसे भाव की सिद्धि होना सर्वजन प्रसिद्ध ही है । जो जैसा होता है वह वैसे ही प्रमाण के द्वारा जाना जाता है, ऐसा स्वीकार किया जाय तो अभावके कारण भावरूप लाठी
आदि माने गये हैं वे गलत ठहरेंगे । अर्थात् लाठी के द्वारा फूट जाने से घटका अभाव हुआ ऐसा कह नहीं सकेंगे ? उस विषयमें भी कह सकते हैं कि जो जैसा भावरूप या
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org