Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 1
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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प्रमेयकमलमार्तण्डे
किमसौ सर्वथा ज्ञाननिर्मुक्तः, कथञ्चिद्वा? तत्राद्यविकल्पे 'मातो मे वन्ध्या' इत्यादिवत्स्ववचनविरोधः । सर्वथा हि यद्यात्मा ज्ञाननिमुक्तः कथमभावपरिच्छेदकः ? परिच्छेदस्य ज्ञानधर्मत्वात् । परिच्छेदकत्वे वा कथमसो सर्वथा ज्ञान निर्मुक्त: स्यात् ? अथ कथञ्चित् ; तथाहि-'अभावविषयं ज्ञानमस्यास्ति निषेध्यविषयं तु नास्ति' इति; तहि तज्ज्ञानमेवाभावप्रमाणं स्यानात्मा । तच्च भावान्तरस्वभावाभावग्राहकतयेन्द्रियैर्जनितत्वात्प्रत्यक्षमेव । ततो निराकृतमेतत्-"न तावदिन्द्रियेणेषा" इत्यादि, "वस्त्वसङ्करसिद्धिश्च तत्प्रामाण्यं समाश्रिता" इत्यादि च; तस्याः प्रत्यक्षादिप्रमाणत एव प्रसिद्धः। कथं ततोऽभावपरिच्छित्तिरिति चेत् ; कथं भावस्य ? प्रतिभासाचे दितरत्र समानम् । न खलु प्रत्यक्षे
किसी विषय को जान रहा है तो वह सर्वथा ज्ञान निर्मुक्त कैसे हुआ । कथंचित् ज्ञान निर्मुक्त है ऐसा दूसरा पक्ष मानो तो इसका अर्थ होता है कि आत्माको प्रभाव विषयक ज्ञान तो है किन्तु निषेध्य विषयक ज्ञान नहीं है, तो इसप्रकार की मान्यता में प्रभाव विषयक ज्ञान ही अभावप्रमाण कहलायेगा, आत्मा नहीं । तथा च-वह ज्ञान भावांतर स्वभाव रूप अभाव का ग्राहक होनेके कारण इन्द्रियों से उत्पन्न हुअा है, अतः प्रत्यक्षप्रमाण रूप ही है । इस प्रकार अभाव प्रमाण का यह तीसरा भी भेद निराकृत हो जाता है । इसलिए मीमांसक ने जो ऐसा कहा है कि
"न तावदिन्द्रियेणैषा"...इन्द्रिय द्वारा यह ज्ञान नहीं होता इत्यादि तथा "वस्त्वसंकरसिद्धिश्च तत्प्रामाण्यं समाश्रिता" वस्तुत्रों के परस्पर असंकीर्णताकी सिद्धि अभावप्रमाणके प्रामाण्य पर निर्भर है इत्यादि, सो यह सब खंडित हुना समझना, क्योंकि प्रत्यक्षादिप्रमाण से ही प्रभाव का ग्रहण होना सिद्ध हो चुका है।
शंका- प्रत्यक्षादि प्रमाण अभाव को किस प्रकार जान सकेंगे ?
समाधान-जैसे वे भावांश को जानते हैं वैसे ही वे अभावांश को जानेंगे ? अर्थात् पाप मीमांसक से जब कोई ऐसा पूछे कि प्रत्यक्षादि प्रमाण भावांश को किस प्रकार जानते हैं ? तो पाप कहोगे कि उसका प्रतिभास होता है अत: वे उसे जानते हैं, तो इसी तरह प्रभावांश का भी प्रतिभास होता है, अतः वे अभावांशको भी जानते हैं । इसका स्पष्टीकरण इस प्रकार से है-अन्य से संसृष्ट हुए अर्थको अर्थात् घट के संबंध से रहित हुए भूतल को पहले तो प्रत्यक्ष प्रमाण जाने और पीछे प्रभाव प्रमाण घट से प्रसंसृष्ट भूतल को जाने ऐसी क्रमिक प्रतीति नहीं होती, किन्तु पहले से ही अन्य से असंसष्ट पदार्थ का प्रत्यक्ष में प्रतिभास हो जाता है । अन्य से प्रसंसृष्ट पदार्थ के ज्ञान
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