Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 1
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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प्रमेयकमलमार्तण्डे
प्रागभावादिभेदान्यथानुपपत्त श्वास्यार्थापत्त्या वस्तुरूपतावसीयते । उक्त च
"न चावस्तुन एते स्युर्भेदास्तेनास्य वस्तुता। कार्यादीनामभावः को भावो यः कारणादिनः(ना) ॥ १॥"
[ मी० श्लो० प्रभाव० श्लो०८] अनुमानावसे या चास्य वस्तुता । यदाह
"यद्वानुवृत्तिव्यावृत्तिबुद्धिग्राह्यो यतस्त्वयम् । तस्माद्गवादिवद्वस्तु प्रमेयत्वाच्च गृह्यताम् ।। १ ।।"
[ मी० श्लो० अभाव. श्लो०४ ] चतुःप्रकारश्चाभावो व्यवस्थित:-प्राक्प्रध्वंसेतरेतराऽत्यन्ताभावभेदात् । उक्त च
"वस्त्वऽसङ्करसिद्धिश्च तत्प्रामाण्यं समाश्रिता । क्षीरे दध्यादि यन्नास्ति प्रागभावः स उच्यते ॥ १ ॥
अनुमान द्वारा भी जानी जाती है जैसा कि कहा है-जिस कारणसे यह अभाव अनुवृत्त बुद्धि और व्यावृत्त बुद्धि द्वारा [इसके होनेपर होना और न होनेपर नहीं होना रूप अन्यथानुपपत्तिद्वारा] ग्रहण करने में आता है उसी कारणसे गो आदिके समान वस्तुरूप है, तथा यह प्रमेयधर्मयुक्त होनेसे भी प्रमाणद्वारा ग्रहण करने योग्य माना जाता है ॥१॥ इसप्रकार प्रभाव प्रमाणके विषयभूत अभावांश की सिद्धि होती है, यह अभाव चार प्रकारका है, प्रागभाव, प्रध्वंसाभाव, इतरेतराभाव और प्रत्यंताभाव अब इनके लक्षण बताये जाते हैं-दूधमें दहीका जो अभाव है वह प्रागभाव कहलाता है, इन दूध दही आदि में परस्परकी जो असंकीर्णता है वह अभाव प्रमाणके प्रामाण्य पर निर्भर है अर्थात् अभाव प्रमाणद्वारा ही यह असंकीर्णता सिद्ध की जाती है ।।१।। दूधका दहीमें जो अभाव होता है वह प्रध्वंसाभाव कहा जाता है, गायमें अश्व आदि अन्य अन्य पदार्थों का जो अभाव रहता है उसे इतरेतराभाव कहते हैं ।।२।। खरगोशके मस्तकके अवयव निम्न, वृद्धि रहित एवं कठोरता आदि धर्म रहित होते हैं, अतः खरगोशके मस्तकपर विषाणका नहीं होना अत्यंताभाव कहलाता है ।।३।। इन चार प्रकारके प्रभावोंको व्यवस्थापित करनेवाला प्रभाव प्रमाण है यदि इस प्रमाणको न माना जाय तो प्रतिनियत वस्तु व्यवस्थाका लोप ही हो जायगा ? कहा भी है-यदि अभाव प्रमाण की प्रामाणिकता न स्वीकार करे तो दूधमें दही और दहीमें दूधकी संभावना हो
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