Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 1
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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अभावविचार:
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"प्रमाणपञ्चकं यत्र वस्तुरूपे न जायते । वस्तुसत्तावबोधार्थं तत्राभावप्रमाणता ।"
[ मो० श्लो० अभाव• श्लो० १ ] इति । न चाध्यक्षेणाभावोऽवसीयते; तस्याभावविषयत्वविरोधात्, भावांशेनैवेन्द्रियाणां सम्बन्धात् । तदुक्तम्
"न तावदिन्द्रियेणेषा नास्तीत्युत्पाद्यते मतिः। भावांशेनैव सम्बन्धो योग्यत्वादिन्द्रियस्य हि ।।"
[ मी० श्लो• अभाव०१८ ] इति । नाप्यनुमानेनासौ साध्यते; हेतोरभावात् । न च विषयभूतस्याभावस्याभावादभावप्रमाणवेयर्थ्यम् ; कारणादिविभागतो व्यवहारस्य लोकप्रतीतस्याभावप्रसङ्गात् । उक्तच
"न च स्याद्वयवहारोयं कारणादिविभागतः । प्रागभावादिभेदेन नाभावो यदि भिद्यते ।। १ ।।"
[ मी० श्लो• अभाव० श्लो० ७ ]
प्रभावांश अनुमानद्वारा भी ग्रहण नहीं होता क्योंकि अनुमानमें हेतुकी अपेक्षा रहती है सो यहां है नहीं। [अभाव रूप वस्तुका किसीके साथ अविनाभाव तो हो नहीं सकता अत: हेतु और प्रतिज्ञारूप अनुमान प्रमाण द्वारा अभावका ग्रहण होना अशक्य है] यहां कोई कहे कि अभावप्रमाणका विषय तो अभाव रूप है अत: विषयका प्रभाव होनेसे अभाव प्रमाणको मानना व्यर्थ है ? सो बात नहीं है, इस तरह मानेंगे तो कारण आदिके विभागसे होनेवाला लोक प्रसिद्ध व्यवहार समाप्त होनेका प्रसंग पाता है, कहा भी है कि कारणादि विभागसे होनेवाले प्रागभाव प्रध्वंसाभाव आदि प्रभावके भेदों द्वारा प्रभावमें भेद होना स्वीकार न किया जाय तो यह अभावभेदका प्रसिद्ध व्यवहार नष्ट हो जाता है ॥१॥ यदि अभाव नामा कोई विषय नहीं होता तो प्रागभाव अादि अभावोंके भेद नहीं बन सकते थे इसप्रकारकी अन्यथानुपपत्ति द्वारा भी अभाव की वस्तरूपता सिद्ध होती है । इसी बातको हमारे ग्रन्थमें कहा है कि-प्रागभाव आदि भेद अवस्तके तो हो नहीं सकते अत: अभावको वस्तुरूप मानना चाहिये, यदि अभाव प्रमाण के विषयभूत अभावको वस्तुरूप नहीं मानते तो कारण आदिके द्वारा होनेवाला कार्यों का जो अभाव है वह कौनसाभाव है सो बताइये ? ॥१।। अभावकी वास्तविकता
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