Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 1
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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प्रमेयकमलमार्त्तण्डे
चैत्रो गृहे जीवति कथं तदा तत्र तदभावो येनासौ तेन विशेष्येत ? यदा च तत्र तदभावो, न तदा तत्र तज्जीवनमिति । द्वितीयपक्षे तु विशेषणस्यासिद्धिः, न खलु चैत्रस्यान्यत्र यज्जीवनं तदर्थापत्त्युदयकाले तथाविधप्रदेश विशेषणत्वेन कुतश्चित्प्रतीयते प्रर्थापत्तेर्वैयर्थ्यप्रसङ्गात् । येनैव हि प्रमाणेन तज्जीवनं प्रतीयते तेनैव तत्सद्भावोपि । न ह्यप्रतिपन्न देवदत्ते तद्धर्मो जीवनं प्रत्येतु ं शक्यम् अतिप्रसङ्गात् । न वाप्रतीतस्य विशेषणत्वमत एव | अर्थापत्त्यैव तत्सिद्धावितरेतराश्रयः - सिद्ध े हि तया तस्यान्यत्र जीवने तद्विशेषितात्तत्प्रदेशाभावादर्थापत्त्युदयः, ततश्च तत्सिद्धिरिति ।
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भाव का विशेषण है, अथवा बहिर्जीवन चैत्राभाव का विशेषरण है ? प्रथम पक्ष माने तो उसमें प्रभावरूप विशेष्यकी असिद्धि होती है, कैसे सो बताते हैं-जब चैत्र घर में जी रहा है, तब उसका वहां अभाव कैसे कहा जा सकता है जिससे कि यह चैत्राभाव रूप विशेष्यका विशेषण कहा जा सके ? तथा जब घर में चैत्र का प्रभाव है, तब वहां उसका जीवन हो नहीं सकता है । दूसरा पक्ष - यदि चैत्रका घर से जो बहिर्जीवन है, वह चैत्राभाव का विशेषण है ऐसा माना जाय तो यह विशेषरण प्रसिद्ध होता है, क्योंकि चैत्रका जो घर से बाहर अन्यत्र जीना है वह ग्रर्थापत्ति के उत्पन्न होते समय उस प्रकार के देश विशेषण रूपसे किसी प्रमाण के द्वारा नहीं जाना जाता है, यदि जाना जाता है तो फिर अर्थापत्ति ज्ञानकी जरूरत ही नहीं रहती है, कैसे सो ही बताते हैं - जिस प्रमाण द्वारा चैत्रका बहिर्जीवन प्रतिभासित होता है, उसी प्रमाण द्वारा चैत्रका सद्भाव भी प्रतिभासित होगा । क्योंकि ऐसा नहीं होता है कि देवदत्त को तो नहीं जाना जाय और उसका जीवन स्वरूप धर्म जान लिया जाय । यदि देवदत्त के जाने विना उसका जीनारूप धर्म जाना जा सकता है, तो मेरु को जाने विना भी उसका वर्ग - रंग जानने में आना चाहिये, अत: यह मानना चाहिये कि जो प्रतीत नहीं होता है, उसमें विशेषरगता नहीं बनती यदि ऐसा हठाग्रह करोगे तो वही अतिप्रसंग दोष उपस्थित होगा । यदि अर्थापत्ति के द्वारा ही चैत्रका अन्यत्र जीवन जाना जाता है, ऐसा कहो तो इस मान्यता में अन्योन्याश्रय दोष आता है, क्योंकि जब प्रर्थापत्ति से चैत्रका अन्यत्र जीना सिद्ध हो जाय तब उस विशेषरण से विशेषित घर में जीने के प्रभाव से अर्थापत्ति की उत्पत्ति होगी और उसके द्वारा फिर चैत्रका बहिर्जीवन सिद्ध होगा । इस तरह दोनों ही असिद्ध हो जाते हैं ।
शंका- चैत्रका जीना निश्चित होकर उसके गृहाभावका विशेषण नहीं बना
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