Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 1
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
View full book text
________________
प्रमेयकमलमार्तण्डे
स्मरणमन्तरेणवाभावांशो भावांशवत्प्रत्यक्षोऽभ्युपगन्तव्यः । भूतलासंसृष्टघटदर्शनाहितसंस्कारस्य च पुनर्घटासंसृष्ट भूभागदर्शनानन्तरं तथाविधघटस्मरणे सति 'अस्यात्राभावः' इति प्रतिपत्तिः प्रत्यभिज्ञानमेव । यदा तु स्वदुरागमाहितसंस्कारः साङ ख्यस्तथाऽप्रतिपद्यमानः तत्प्रसिद्धसत्त्वरजस्तमोलक्षणविषयनिदर्शनोपदर्शनेन अनुपलब्धिविशेषतः प्रतिबोध्यते तदाप्यनुमानमेवेति क्वाभावप्रमाणस्यावकाशः ? ततोऽयुक्तमुक्तम्-'न चाध्यक्षणाभावोऽवसीयते तस्याभावविषयत्वविरोधात्, नाप्यनुमानेन हेतोरभावात्' इति ।
[अकेले] घटको देखनेसे जिसको संस्कार उत्पन्न (धारणा ज्ञान) हुआ है ऐसे पुरुष को जब कभी घट रहित मात्र भू भाग दिखाई देता है तब उस पुरुषको पहले देखे हुए उस प्रकारके घटका स्मरण होता है और “यहांपर इस स्मृति में स्थित घटका प्रभाव है" इसतरहका प्रतिभास होता है सो यह प्रत्यभिज्ञान ही है अन्य कुछ नहीं । सांख्य इसप्रकारके वस्तु के अभाव के ज्ञानको सत्य नहीं मानता क्योंकि उनके आगममें सबको सद्भाव रूप ही माना है अभावरूप नहीं, सो इस कुप्रागमके संस्कार के कारण सांख्य अभावका प्रत्यक्ष ज्ञान होना स्वीकार नहीं करता तब उन्हींके मतमें प्रसिद्ध ऐसे सत्व, रज, तम संबंधी दृष्टांत देकर समझाया जाता है कि "जिस प्रकार सत्व में रजोगुणकी एवं तमोगुणकी अनुपलब्धि है [अभाव है] उसी प्रकार इस भूतलपर घट नहीं है" इत्यादि सो इसप्रकार सांख्यको समझाने के लिये अनुमानप्रमाण द्वारा अभावांशका ग्रहण किया जाता है । इसतरह प्रत्यक्ष, प्रत्यभिज्ञान तथा अनुमान द्वारा अभावांशका ग्रहण होना सिद्ध हो जाता है अत: मीमांसकका निम्नलिखित वाक्य असत है कि- "प्रत्यक्ष द्वारा प्रभावका ग्रहण नहीं होता, क्योंकि वह अभावको विषय ही नहीं करता अनुमान द्वारा भी अभावका ग्रहण नहीं होता, क्योंकि हेतुका अभाव है”।
दूसरी बात यह है कि-प्रभाव प्रमाण से यदि अभाव का ग्रहण होता है तो उससे केवल प्रभाव की ही प्रतिपत्ति होगी प्रतियोगी की निवृत्ति की प्रतिपत्ति तो होगी नहीं।
शंका-प्रभाव की प्रतिपत्ति से घटाभाव जाना जायगा ?
समाधान- अच्छा तो बताइये कि वह जो प्रतियोगी की निवृत्ति है वह प्रतियोगी के स्वरूप से संबद्ध है कि असंबद्ध है ? प्रतियोगी के स्वरूप से संबद्ध है ऐसा तो कह नहीं सकते, क्योंकि भाव और अभाव में तादात्म्यादि संबंध बनते नहीं हैं इस
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org