Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 1
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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प्रमेयकमलमार्तण्डे
मानाः शक्तयः; इत्यपसु(प्यसुन्दरम्; अष्टश्वरादेरपरमार्थसत्त्वप्रसङ्गात् । प्रदीपादिद्रव्यस्सैकस्य
घटित किया जा सकता है, बाहर में पठन अभ्यास आदि समान होते हुए भी कोई विद्यार्थी परीक्षा में उत्तीर्ण होता है और कोई नहीं । गेहूं में गेहूं का ही अंकुर उत्पन्न होना मिट्टी से घड़ा ही बनना आदि प्रादि कार्य अपने अपने कारणों की अलग अलग शक्तियों के अनुमापक हो रहे हैं । 'शक्तिः क्रियानुमेया स्यात्" शक्ति मात्र कार्य की अन्यथानुपपत्ति से जानी जाती है। इन अग्नि आदि संपूर्ण पदार्थों की शक्तियां नित्य भी हुआ करती हैं और अनित्य भी, द्रव्यशक्ति नित्य है और पर्याय शक्ति अनित्य है, द्रव्य पर्यायात्मक ही वस्तु होती है, द्रव्य अनादि निधन है, अतः उसकी शक्ति नित्य है, पर्याय सादि सांत है, अत: उसको शक्ति अनित्य है, अकेली द्रव्य शक्ति से कार्य निष्पन्न नहीं होता, पर्याय शक्ति से युक्त जब द्रव्य शक्ति होती है तब कार्य होता है । इस कथन से सिद्ध होता है कि उपादान निमित्त से निरपेक्ष नहीं होता अनेक सहकारी निमित्त कारण कलाप से युक्त जब द्रव्य शक्ति या उपादान हो जाता है तब यह कार्य को करता है, यहां तक विवाद का कोई खास प्रसंग नहीं है, किन्तु पर्याय शक्ति में जो अनेक सहकारी निमित्त हैं वे सभी अपने आप मिलते हैं या स्वतः उपस्थित होते हैं ? यह प्रश्न है, जब साक्षात् बुद्धि पूर्वक अनेक सहकारी सामग्री को जुटाकर कार्य करते हैं तो कैसे कह सकते हैं कि सभी कारण कलाप स्वतः उपस्थित हो जाते हैं, सर्वथा सभी कारण अपने आप मिलते हैं और कार्य निष्पन्न हो जाता है। ऐसा सर्वथा एकान्त वाद प्रतीति का अपलाप करने वाला है, संसार में बहुत से कार्य बुद्धि पूर्वक होते हैं और बहुत से अबुद्धि पूर्वक । कार्यों में भी चेतन के कार्य और अचेतन के कार्य अन्तर्भूत हैं । अचेतन कार्य अपने कारण समूह से निष्पन्न होते हैं, उसमें किसी किसी में चेतन की प्रेरकता रहती है । दोनों चेतन अचेतन ( जीव अजीव) के कार्य सर्वथा निमित्त के स्वयं हाजिर होने से नहीं होते, किन्तु उनमें बुद्धि पूर्वक प्रयत्न करने से होने वाले कार्य भी हैं । यह तो निश्चित है कि उपादान के बिना अर्थात् द्रव्य शक्ति के बिना या पर्याय शक्ति के बिना कार्य नहीं होते हैं, किन्तु पर्याय शक्ति का जो सहकारी कारण कलाप है वह सर्वथा अपने आप उपस्थित नहीं होता । जो अनित्य है तो उसको कारण चाहिये और सभी कारण अपने पाप नहीं जुड़ते, पुरुषार्थ का मतलब भी यही है कि पुरुष से जो होवे । सहकारी कारण भी यदि एक होता अर्थात् पर्यायशक्ति में जो सहकारी की अपेक्षा है वह यदि एक ही होता तब
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