Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 1
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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प्रमेयद्वित्वात् प्रमाणद्वित्ववाद पूर्वपक्ष:
एक क्षण नष्ट होता है उसके अनंतर दूसराक्षण उत्पन्न होता है इस प्रकार उपादान उपादेय भावसे क्षणों की परंपरा चलती है वही क्षण संतान कहलाता है जो नील या घट आदि क्षणोंकी संतान हैं उनको एक मानकर स्थिरताका आभास होने लगता है । समस्त घट संतानोंका जो साधारण रूप है वही सामान्य लक्षण है । क्योंकि स्वलक्षण तो वस्तुका असाधारण रूप है । वह सबसे व्यावृत्त है । अतः निश्चय हुआ कि जो वस्तु IT वास्तविक स्वलक्षण-क्षण स्थायी असाधारण रूप है वह प्रत्यक्ष प्रमाणका विषय है, और जो क्षण प्रवाह रूप साधारण - सामान्य लक्षण है वह अनुमान प्रमाणका विषय है । इस प्रकार प्रमेय-वस्तु या पदार्थ दो प्रकारके होनेसे उनके ग्राहक ज्ञानोंमें( प्रमाणों में ) भेद हो जाता है यह कथन सिद्ध हुआ ।
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* पूर्वपक्ष समाप्त *
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