Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 1
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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प्रागमविचारः
"शब्दत्वं गमकं नात्र गोशब्दत्वं निषेत्स्यते ॥ व्यक्तिरेव विशेष्यातो हेतुश्च का प्रसज्यते ।।"
[ मी० श्लो० शब्दपरि० श्लो० ६४ ] न चान्वयोस्यास्ति व्यापारेरण हि सद्भावेन सत्तयेति यावत् । विद्यमानस्य ह्यन्वेतृत्वं, नाविद्यमानस्य । 'यत्र हि धूमस्त त्रावश्यं वह्निरस्ति' इत्यस्तित्वेन प्रसिद्धोऽन्वेता भवति धूमस्य । न त्वेवं शब्दस्यार्थेनान्वयोस्ति, न हि तत्र शब्दाकान्ते देशेऽर्थस्य सद्भावः । न खलु यत्र पिण्डखजूरादिशब्दः श्र यते तत्र पिण्डखराद्यर्थोप्यस्ति । नापि शब्द कालेऽर्थोऽवश्यं सम्भवति ; रावणशङ्खचक्रवा
भावार्थ-शब्दजन्य ज्ञानको पागम प्रमाण न मानकर अनुमानप्रमाण मानना चाहिये ऐसा बौद्धका कहना है इसपर जैनाचार्य बौद्धको समझा रहे थे कि बीचमें ही मीमांसक बौद्धके मंतव्यका निरसन करते हुए कहते हैं कि शब्दजन्य ज्ञानको अनुमान किसप्रकार मान सकते हैं ? क्योंकि अनुमानमें प्रतिज्ञा और हेतु रूप ज्ञान होता है; इसपर बौद्धने अनुमान उपस्थित किया कि "शब्द अर्थवाला होता है क्योंकि वह शब्द रूप है' इसतरह शब्द और अर्थका अविनाभाव होनेसे शब्दको सुनकर जो भी ज्ञान होता है वह अनुमान प्रमाणरूप ही होता है अर्थात् गो शब्द सुना तो यह गो शब्द सास्वादिमान अर्थका प्रतिपादक है इत्यादि अनुमानरूप ही ज्ञान होता है। मीमांसक ने कहा कि उपर्युक्त अनुमान वाक्य सदोष है, देखिये "शब्द अर्थवाला होता है" यह तो प्रतिज्ञावाक्य है और क्योंकि वह शब्दरूप है यह हेतु वाक्य है सो शब्द ही तो प्रतिज्ञाका वाक्यांश है और उसीको फिर हेतु भी बनाया; सो यह प्रतिज्ञाका एक देश नामा हेत्वाभास [ सदोष हेतु ] है। यदि शब्दको हेतु न बनाकर शब्दत्वको बनाया जाय तो भी गलत होता है क्योंकि शब्द तो गो आदि विशेषरूप है और शब्दत्व सामान्य सर्वत्र व्यापक एक है ऐसा व्यापक सामान्य एक व्यक्तिमें अविनाभावसे रहना और उसका गमक होना असंभव है ।
दूसरी बात यह है “शब्द अर्थवान होता है" इस प्रतिज्ञा वाक्यमें बाधा पाती है क्योंकि शब्दके व्यापार के साथ अर्थका अन्वय नहीं है कि जहां शब्दका उच्चारणरूप व्यापार हुआ वहां अर्थ अवश्य ही हो, शब्दका जहां सद्भाव या सत्ता हो वहाँ अर्थ भी जरूर हो ऐसा नियम नहीं है । तथा जो अन्वेतृत्व होता है वह विद्यमानका होता है अविद्यमानका तो होता नहीं, प्रसिद्ध बात है कि "जहां धूम है वहां अवश्य ही अग्नि है" इसप्रकार अस्तित्वपनेसे प्रसिद्ध अग्नि धूम की अन्वेता होती है, इसप्रकार का
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