Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 1
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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अथ प्रत्यक्षोद्देश.
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स्वर्गापूर्वदेवतादेस्तथाविधस्य प्रतिषेधोऽनुपलब्धेः स्यात् ? सोयं चार्वाक: "प्रमाणस्यागौणत्वादनुमानादर्थनिश्चयो दुर्लभः" [ ] इत्याचशाणः कथमत एवाध्यक्षादेः प्रामाण्यादिकं प्रसाधयेत् ? प्रसाधयन्वा कथमतीन्द्रियेतरार्थविषयमनुमानं न प्रमाणयेत् ? उक्त च
"प्रमाणेतरसामान्यस्थितेरन्यधियो गतेः।
प्रमाणान्तरसद्भावः प्रतिषेधाच्च कस्यचित् ।।"[ ] इति । तन्नानुमानस्याप्रामाण्यम् ।
मान द्वारा प्रत्यक्षका प्रामाण्य सिद्ध किया जाता है तो अतीन्द्रिय गम्य और इन्द्रियगम्य पदार्थको विषय करनेवाला अनुमानज्ञान किसप्रकार प्रमाणभूत नहीं माना जायगा ? अर्थात् इसे भी प्रमाणभूत मानना होगा। कहा भी है-प्रमाणत्व और अप्रमाणत्वका अस्तित्व होनेसे, पर प्राणियोंकी बुद्धिको प्रतीति होनेसे तथा परलोकादि किसीका प्रतिषेध करनेसे प्रत्यक्षके अतिरिक्त जो अनुमान है उसकी प्रमाणता सिद्ध होती है ।। १ ।।
भावार्थ - यहांपर अनुमान ज्ञान में प्रमाणता सिद्ध करनेके लिये तीन हेतु उपस्थित किये हैं, वे इसप्रकार हैं-यह ज्ञान प्रामाणिक है क्योंकि इसमें अविसंवाद है एवं यह ज्ञान अप्रामाणिक है क्योंकि इसमें विसंवाद है, इसतरह ज्ञानोंकी प्रमाणता अप्रमाणताका निर्णय अनुमान द्वारा ही होता है । तथा इस पुरुषमें बुद्धि है, क्योंकि वचन कुशलता प्रादि बुद्धिके कार्य दिखाई दे रहे इत्यादि रूपसे परव्यक्तिमें बुद्धिका अस्तित्व अनुमान द्वारा ही सिद्ध हो सकता है । तीसरा अनुमान चार्वाकको इसलिये चाहिये कि उन्हें परलोक प्रादिका निषेध करना है अर्थात् “स्वर्गादि परलोकका अस्तित्व नहीं है, क्योंकि उनकी अनुपलब्धि है" इत्यादि अनुमानद्वारा ही परलोकादि प्रतिषेध करना संभव है । उपर्युक्त तीनों ही बातें प्रत्यक्ष द्वारा तो सिद्ध नहीं की जा सकती अतः अनुमान ज्ञानको प्रमाणभूत मानना आवश्यक है। इसप्रकार प्रत्यक्षके समान अनुमान भी एक पृथक् प्रमाण है ऐसा निश्चय हुआ।
* प्रत्यक्षक प्रमाणवाद समाप्त *
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