Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 1
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
View full book text
________________
प्रामाण्यवादः
४५५
किञ्च, असौ सर्वसम्बन्धिनी, प्रात्मसम्बन्धिनी वा ? प्रथमपक्षे असिद्धा; न खलु 'सर्वे प्रमातारो बाधकं नोपलभन्ते' इत्यग्दिशिना निश्च तु शक्यम् । नाप्यात्मसम्बन्धिनी; तस्याः परचेतोवृत्तिविशेषेरनै कान्तिकत्वात् । तन्नानुपलब्धिनिमित्तम् ।
नापि संवादोनवस्थाप्रसङ्गात् । कारणदोषाभावेप्ययमेव न्यायः ।
और दोष इनका अभाव होने से ज्ञान में प्रामाण्य प्राता है ऐसा स्वीकार करते हैं, इस मान्यता पर विचार करते हुए आचार्य ने सिद्ध किया है कि बाधकाभाव पूर्वोत्तर वर्ती होकर भी प्रमाण में प्रमागता का सद्भाव बता नहीं सकता अर्थात् किसी को "यह जल है" ऐसा ज्ञान हुआ अब इस ज्ञान की प्रमाणता भाट्टमतानुसार स्वत: या बाधकाभाव के निश्चय से होती है सो इस जल ज्ञान में बाधक कारण नहीं है अर्थात् बाधक का अभाव है ऐसा निश्चय कब होता है सो विमर्श करें-जब वह जल का प्रतिभास करने वाला पुरुष जल लेने के लिये प्रवृत्ति करता है उस प्रवृत्ति के पहले बाधकाभाव होना माना जाय तो ऐसा प्रवृत्ति के पहले का बाधकाभाव असत्य प्रतिभास करानेवाले भ्रान्त आदि विपरीत ज्ञानों में भी पाया जा सकता है । अत: प्रवृत्ति के पहले का बाधकाभाव कुछ मूल्य नहीं रखता । प्रवृत्ति के बाद अर्थात् पुरुष को जब जल का ज्ञान होता है और वह स्नानादि क्रिया भी कर लेता है उस समय जल ज्ञान के बाधकाभाव का निश्चय करना तो वह केवल हास्यास्पद ही होगा-क्योंकि कार्य तो हो चुका है । अर्थात् जलज्ञान की सत्यता तो साक्षात् सामने आ ही गई है। अब बाधकाभाव उसमें और क्या सत्यता लावेगा कि जिसके लिये वह अपेक्षित हो ।
उत्तर या पूर्वकाल के अनुपलब्धि हेतु से बाधकाभाव निश्चय करना भी पहले के समान अनुपयोगी है, अतः बाधकाभाव के निश्चय से (स्वत:) प्रामाण्य आता है यह कथन खण्डित होता है । जल ज्ञान में कुछ समय के लिये बाधा नहीं आती ऐसा मानकर उस ज्ञान में स्वत: प्रामाण्य स्थापित किया जाय तो भ्रान्ति आदि ज्ञानों में भी प्रामाण्य मानना होगा, क्योंकि कुछ काल का बाधकाभाव तो इन ज्ञानों में भी रहता है । तथा हमेशा ही जल ज्ञान में बाधकाभाव है ऐसा जानने पर उसमें प्रामाण्य आता है इस तरह माना जाय तो हमेशा के बाधकाभाव को तो सर्वज्ञ ही जान सकते हैं हम जैसे व्यक्ति नहीं । किञ्च सर्व संबंधिनी अनुपलब्धि बाधकाभावको निश्चय कराने वाली होती है या केवल आत्म संबंधी अनुपलब्धि बाधकाभावका निश्चय करानेवाली होती है ? सर्व संबंधी अनुपलब्धि तो प्रसिद्ध है क्योंकि सभी प्रमाताओं को बाधक
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org