Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 1
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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प्रामाण्यवाद:
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न चात्र लिङ्गमस्ति । यथार्थोपलब्धिरस्तीत्यप्यसङ्गतम् ; यतो यथार्थत्वायथार्थत्वे विहाय यदि कार्यस्योलब्ध्याख्यस्य स्वरूपं निश्चितं भवेत्तदा यथार्थत्वलक्षणः कार्यविशेषः पूर्वस्मात्कारणकलापादनिष्पद्यमानो गुणाख्यं स्वोत्पत्तौ कारणान्तरं परिकल्पयेत् । यदा तु यथार्थेवोपलब्धिः स्वयो (स्वो)त्पादककारणकलापानुमापिका तदा कथं तद्व्यतिरिक्तगुणसद्भाव? अयथार्थत्वं तूपलब्धेविशेष: पूर्वस्मात्कारणसमूहादनुत्पद्यमानः स्वोत्पत्तौ सामन्यन्तरं परिकल्पयतीति परतोऽप्रामाण्य तस्योत्पत्ती दोषापेक्षत्वात् ।
प्रत्यक्ष से जान लिया होता, इसलिये यहां पर गुण और प्रामाण्य का कार्यकारणभाव प्रत्यक्षगम्य नहीं है यह निश्चित हुआ । अनुपलब्धि हेतु से गुण और प्रामाण्य का कारण कार्यभाव जानना भी शक्य नहीं है, क्योंकि अनुपलब्धि तो मात्र प्रभाव को सिद्ध करती है । इस तरह के विषय में तो अनुपलब्धि की गति ही नहीं है । यहां पर घट नहीं है क्योंकि उसकी अनुपलब्धि है इत्यादिरूप से अनुपलब्धि की प्रवृत्ति होती है, इसका इसके साथ कारणपना या कार्यपना है ऐसा सिद्ध करना अनुपलब्धि के वश की बात नहीं है।
जैन "इन्द्रियों के गुणों से प्रामाण्य होता है, [प्रमाण में प्रामाण्य आता है। ऐसा मानते हैं किन्तु इन्द्रियगत गुणों को बतलाने वाला कोई हेतु दिखाई नहीं देता है । कोई शंका करे कि जैसी की तैसी पदार्थों की उपलब्धि होना ही गुणों को सिद्ध करने वाला हेतु है ? सो ऐसी बात भी नहीं है, क्योंकि यथार्थरूप कार्य और अयथार्थरूप कार्य इन दोनों प्रकारके कार्यों को छोड़कर अन्य तीसरा उपलब्धि नामका कार्यत्व सामान्य का स्वरूप निश्चित होवे तो यथार्थ जाननारूप जो कार्य विशेष है वह पहिले कहे गये कारणकलाप ( विज्ञानमात्र की इन्द्रियरूप सामग्री ) से पैदा नहीं होता है इसलिये वह अपनी उत्पत्ति में अन्य गुण नामक कारणान्तर की अपेक्षा रखता है इत्यादि बात सिद्ध होवे, किन्तु हमें इन्द्रियादि से यथार्थरूप पदार्थ की उपलब्धि होती है जो कि अपने उत्पादक कारणसमूह का ही अनुमान करा रही है तो फिर उस कारणसमूह से पृथक् गुणों का सद्भाव क्यों माने ? इन्द्रिय से यथार्थरूप पदार्थ का ग्रहण हो जाता है अतः वह इन्द्रियों को ही अपना कारण बतावेगा, उन्हें छोड़ कर अन्य को कारण कैसे बतायेगा ? इस तरह पदार्थ का यथार्थ ग्रहणरूप कार्य तो अपने सामान्यकारण को बताता है यह निश्चित हो जाता है । अब अयथार्थ रूप से पदार्थ की उपलब्धि होनारूप जो कार्य है उस पर विचार करना है, यदि अयथार्थरूपसे पदार्थ
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