Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 1
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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प्रामाण्यवादः
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रूपादिद्वारेणोपजायन्ते । ये तु कार्यधर्माः कारणेष्वविद्यमाना न ते ततः कार्यवत् जायन्ते किन्तु स्वत एव, यथा तस्यैवोदकाहरणशक्तिः । एवं विज्ञानेप्यर्थतथात्वपरिच्छेदशक्तिश्चक्षुरादिष्वविद्यमाना तेभ्यो नोदयमासादयति किन्तु स्वत एवाविर्भवति । उक्त च -
"प्रात्मलाभे हि भावानां कारणापेक्षिता भवेत् । लब्धात्मनां स्वकार्येषु प्रवृत्तिः स्वयमेव तु ॥"
[ मी• श्लो० सू० २ श्लो० ४८ ] यथा-मृत्पिण्डदण्डच क्रादि घटो जन्मन्यपेक्षते ।।
उदकाहरणे त्वस्य तदपेक्षा न विद्यते" ।। [ ]
वह उसमें अपने कारण से आता है कार्य जैसे ही कारण से उत्पन्न हुआ कि साथ ही वे स्वभाव उसमें उत्पन्न हो जाते हैं । जैसे मिट्टी के पिण्ड में रूप आदि गुण हैं वे घटरूप कार्य के उत्पन्न होते ही साथ के साथ घटरूप कार्य में आ जाते हैं। कोई कोई कार्य के स्वभाव ऐसे भी होते हैं कि जो कारणों में नहीं रहते हैं, ऐसे कार्य के वे गुण उस कारण से पैदा न होकर स्वतः ही उस कार्य में हो जाया करते हैं । जैसे कार्यरूप घट में जल को धारण करने का गुण है वह सिर्फ उस घटरूप कार्य का ही निजस्वभाव है, मिट्टीरूप कारण का नहीं । जैसे यहां मिट्टी और घट की बात है वैसे विज्ञान की बात है, विज्ञान में भी पदार्थ को जैसा का तैसा जाननेरूप जो सामर्थ्य है वह उसके कारणभूत चक्षु आदि में नहीं है, अतः वह शक्ति चक्षु आदि से पैदा न होकर स्वतः ही उसमें प्रकट हो जाया करती है। यही बात अन्यत्र कही है-पदार्थ उत्पत्ति मात्र में कारणों की अपेक्षा रखते हैं, जब वे पदार्थ उत्पन्न हो जाते हैं अर्थात् अपने स्वरूप को प्राप्त कर चुकते हैं तब उनकी निजी कार्य में प्रवृत्ति तो स्वयं ही होती है । मतलब-पदार्थ या घटरूप कार्य मिट्टीकारण से सम्पन्न हुआ अब उस घट का कार्य जो जल धारण है वह तो स्वयं घट ही करेगा, उसके लिये मिट्टी क्या सहायक बनेगी ? अर्थात् नहीं । इसी विषय का खुलासा कारिका द्वारा किया गया है-मिट्टी का पिण्ड, दंड, कुम्हार का चक्र इत्यादि कारण घट की उत्पत्ति में जरूरी हैं, किन्तु घट के जल धारण करने रूप कार्य में तो मिट्टी आदि कारणों की अपेक्षा नहीं रहती है । ऐसे अनेक उदाहरण हो सकते हैं कि कार्य निष्पन्न होने पर फिर अपने कार्य के संपादन में वह कारण की अपेक्षा नहीं रखता है ।
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