Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 1
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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प्रमेयकमलमार्तण्डे समानत्वात् । नैर्मल्यादेर्मलाभावरूपत्वात्कथं गुणरूपतत्यप्यसाम्प्रतम् ; दोषाभावस्य प्रतियोगिपदार्थस्वभावत्वात् । निःस्वभावत्वे कार्यत्वधर्माधारत्वविरोधात् खरविषाणवत् । तथाविधस्याप्रतीते रनभ्युपगमाच्च, अन्यथा
__ "भावान्तरविनिमुक्तो भावोऽत्रानुपलम्भवत् ।
प्रभावः समस्त (सम्मतस्त, स्य हेतोः किन्न समुद्भवः ।।" [ ] भाट्ट का ऐसा कहना अयुक्त है, क्योंकि जैन लोग तर्क नामक प्रामाणान्तर से ही इन्द्रियगुण के साथ कार्यत्व हेतु का अविनाभाव संबंध निश्चित करते हैं, किसी भी अनुमान के हेतु का अविनाभाव हो वह तर्क प्रमाण से ही जाना जाता है । अच्छाअाप अपनी बात बताइए कि अप्रामाण्य को प्रतिपादन करने वाले जो दोष हैं उन दोषों की प्रतीति कैसे होती है अर्थात् अप्रामाण्य का और दोषों का अविनाभाव किस प्रमाण से जाना जाता है अनुमान से कि प्रत्यक्ष से ? इत्यादि प्रश्न तो आपके ऊपर भी आ पड़ेगे, पाप भाट्ट उन प्रश्नों का निवारण कैसे कर सकेंगे । आपके यहां तो तर्क प्रमाण माना नहीं है कि जिसके द्वारा हेतु का अविभाव जाना जाय ।
शंका-नेत्र की निर्मलता तो यही है कि मल का न होना, अत: उसके अभाव को आप गुण कैसे कह सकते हैं।
___ समाधान- यह शंका ठीक नहीं है, दोषों का अभाव को प्रतियोगी पदार्थ के स्वभावरूप ही कहा जाता है अर्थात् दोषों का अभाव है तो गुणों का सद्भाव है, मिथ्यात्व आदि नहीं हैं तो सम्यक्त्व है, अज्ञानी नहीं है तो ज्ञानी है, इस तरह से ही माना जाता है, अभाव को यदि इस प्रकार भावान्तरस्वभावरूप नहीं माना जाय और सर्वथा निस्स्वभावरूप ही माना जाय तो वह तुच्छाभाव कार्यत्व धर्म का अाधारभूत नहीं बन सकता । कहने का मतलब यही है कि दोषों का अभाव गुण रूप नहीं है तो उसमें जो कुछ कार्यप्रक्रिया होती है-जैसे कि नेत्र में अंजनादि से निर्मलतारूप कार्य होते हैं वे नहीं हो सकते, जैसे गधे का सींग निःस्वभाव होने से उसमें कुछ भी कार्य नहीं होते हैं । सर्वथा नि:स्वभावरूप अभाव प्रतीति में भी नहीं आता है; और न आपने निःस्वभाव प्रभाव को माना ही है । यदि प्रभाव को सर्वथा निःस्वभावरूप मानोगे तो आगे के श्लोक में कथित मान्यता में बाधा उपस्थित होगी
भावांतरसे निमुक्त ऐसा भाव हुआ करता है, जैसे-घट का अनुपलम्भ है तो वह अनुपलम्भ घट से भिन्न पट की या अन्य को उपलब्धि को बतलाता है, यही
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