Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 1
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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प्रमेयकमलमार्तण्डे
है, उसकी स्वको जाननेकी शक्ति और परको जानने की शक्ति उससे अभिन्न है स्व हो चाहे पर हो दोनों में जाननपना समान है अत: इनमें अभेद है । इसतरह ज्ञानत्व स्वरूपकी अपेक्षा अभेद और विषय भेदकी अपेक्षा भेद है ऐसा मानना चाहिये, तथा ऐसा स्वभाववाला ज्ञान आत्मासे कथंचित अभिन्न ऐसा स्वीकार करना चाहिये । तथा ज्ञान की स्वपर प्रकाशनरूप जो शक्ति है वह मात्र परोक्ष है क्योंकि छद्मस्थ जीव किसी भी गुण की शक्ति को प्रत्यक्ष नहीं कर सकता सिर्फ उसका कार्य देखकर अनुमान से वह उन्हें जान लेता है । सामर्थ्य कार्यानुमेय है, इस बात को सभी वादी प्रतिवादी स्वीकार करते हैं । इसलिये ज्ञान स्वपर प्रकाशक है यह सिद्धान्त सिद्ध हुना।
ज्ञानान्तरवेद्य ज्ञान के खंडन का
सारांश समाप्त
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