Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 1
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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साकारज्ञानवाद.
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तदुत्पत्तेरिन्द्रियादिना व्यभिचारान्नियामकत्वायोगः । तदुत्पत्तेस्ताद प्याच्चार्थस्य बोधो नियामको नेन्द्रियादेविपर्ययादित्यप्यसाम्प्रतम्, तद्वयलक्षणस्यापि समानार्थसमनन्तरप्रत्ययेनानैकान्तिकत्वात् । कथं चार्थवदिन्द्रियाकारं नानुकुर्यादसौ तदुत्पत्तेरविशेषात् ? तदविशेषेप्यस्यकरणान्तरपरिहारेणाकारानुकारित्वं पुत्रस्येव . पित्राकारानुकरणमित्यप्यसङ्गतम् ; स्वोपादानमात्रानुकरण प्रसंगात् । विषयस्यालम्बनप्रत्ययतया स्वोपादानस्य च समनन्तरप्रत्ययतया प्रत्यासत्तिविशेषसद्भावात् उभयाकारानुकरणेऽर्थवदुपादानस्यापि विषयतापत्तिरविशेषात् । तज्जन्मरूपाविशेषेप्यध्यवसायनियमात् प्रथम क्षणवर्ती ज्ञान का जो विषय है वही द्वितीय क्षणवर्ती ज्ञान का भी विषय हैइसी का नाम समानार्थ है, समनन्तर-अर्थात् प्रथम के बाद विना व्यवधान के उत्पन्न हुआ जो प्रत्यय-ज्ञान है वह समनन्तर प्रत्यय है सो उस ज्ञान में तदाकार और तदुत्पत्ति ये दोनों लक्षण पाये जाते हैं तो भी वहां उसका जानना रूप कार्य नहीं देखा जाता है । अतः जिसमें दोनों सम्बन्ध हों वहां जानना होता है ऐसा नियम व्यभिचरित होता है।
विशेषार्थ-- बौद्ध के यहां क्षणिकवाद है, अतः ज्ञान और पदार्थ प्रतिक्षण बदलकर नये २ उत्पन्न होते रहते हैं, पूर्व पूर्व के ज्ञान उत्तर उत्तर के ज्ञानों को और पूर्व पूर्व के नीलादि पदार्थ उत्तर उत्तर के नीलादिकों को पैदा करते रहते हैं । उनकी यह निश्चित परंपरा चलती रहती है । इसीका नाम सन्तान है । किसी एक विवक्षित ज्ञान ने नीलाकार होकर नील को जाना और दूसरे क्षण अपनी संतान को पैदाकर नष्ट हो गया। उस द्वितीय क्षणवर्ती ज्ञान में सभी बातें मौजूद हैं, अर्थात् तदुत्पत्ति और तदाकारता है क्योंकि वह उस प्रथम ज्ञान से पैदा हुआ है अतः तदुत्पत्ति है तथा उस ज्ञान में आकार भी वही नील का है, इसलिये तदाकारत्व भी मौजूद है तो भी वह उत्तर क्षणवर्ती ज्ञान अपने उस पूर्व क्षणवर्ती ज्ञान को नहीं जानता है, वह तो द्वितीय क्षणवर्ती नीलको ही जानता है, ऐसा बौद्ध के यहां माना है, इसलिये जिसमें तदुत्पत्ति और तदाकारता होवे उसी के द्वारा उसका जाननारूप कार्य होता है, अर्थात् ज्ञान जिससे पैदा हुआ है और जिसका आकार उसमें आया है उसी को जानता है सबको नहीं यह कथन असत्य सिद्ध हुअा ॥
ज्ञान जैसे पदार्थ के प्राकार होता है वैसे इन्द्रियाकार क्यों नहीं होता यह भी एक प्रश्न है, क्योंकि जैसे ज्ञानको पदार्थ से पैदा होना माना है-वैसे ही इन्द्रियों से भी उसको पैदा होना माना है, ज्ञानके प्रति जनकता तो दोनों में समान ही है ?
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