Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 1
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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प्रमेयकमलमार्तण्डे
विरोधात् "नाज्ञातं ज्ञापकं नाम" [ ] इत्य खिलैः परीक्षादक्षैरभ्युपगमात् । प्रमातुरात्मनो ज्ञापकस्य स्वयं प्रकाशमानस्योपगमादर्थे प्राकट्यसम्भवे करणज्ञान कल्पनावैफल्यमित्युक्तम् । नापि ज्ञानधर्मः; अस्य सर्वथा परोक्षतयोपगमात् । यत्खलु सर्वथा परोक्षं तन्न प्रत्यक्षताधर्माधारो यथाऽहधादि, सर्वथा परोक्षं च परैरभ्युपगतं ज्ञानमिति ।
मीमांसक-जिस प्रकार नेत्र आदि इन्द्रियां स्वत: परोक्ष रहकर ही पदार्थों को प्रत्यक्ष किया करती हैं उसी प्रकार ज्ञान भी स्वयं परोक्ष रहकर पदार्थों को प्रत्यक्ष कर लेगा?
जैन- यह कथन गलत है क्योंकि नेत्र आदि इन्द्रियां पदार्थों को प्रकट(प्रकाशित) नहीं करती हैं किन्तु वे अर्थ प्रकाशक ज्ञान की हेतु होती हैं अर्थात् - इन्द्रियां ज्ञान की सिर्फ सहायक बनती हैं, इसलिये उनमें अर्थ प्रकाशकत्व का उपचार कर लिया जाता है । और एक बात यह है कि जो कारणस्वरूप करण होता है वह अज्ञात रहकर भी कार्य में व्यापार कर सकता है, किन्तु जो ज्ञापक करण होता है वह ऐसा नहीं होता, वह तो ज्ञात होकर ही कार्य में व्यापार करता है । "नाज्ञातं ज्ञापकं नाम' अर्थात् अज्ञात वस्तु ज्ञापक नहीं कहलाती है, ऐसा सभी परीक्षक विद्वानों ने स्वीकार किया है।
मीमांसक-प्रमाता पात्मा जब स्वयं ज्ञापककरण मोजूद है तो उसके द्वारा ही अर्थप्राकट्य हो जावेगा, ऐसा मानने पर ज्ञान में स्वप्रकाशकता की आवश्यकता ही नहीं रहती है, क्योंकि स्वप्रकाशक आत्मा उपस्थित ही है ।
जैन-तो फिर आपको ज्ञान को जानने के लिये करण भूत अन्य ज्ञान की आवश्यकता नहीं रहेगी, अर्थात्-प्रात्मा ही स्वयं पदार्थ को या स्वतः को जानते समय करणभूत बन जायगा, यदि आत्मा से भिन्न कहीं ज्ञान उपलब्ध नहीं होता है अत: प्रत्यक्षता ज्ञान का धर्म है, ऐसा मीमांसक कहें तो यह कहना भी ठीक नहीं है, क्योंकि उन्होंने ज्ञान को सर्वथा परोक्ष माना है । जो सर्वथा परोक्ष ही रहता है वह प्रत्यक्षता रूप धर्म का आधार नहीं हो सकता, जैसे कि अदृष्ट-पुण्यपापादि, ये सर्वथा परोक्ष हैं। अत: उनमें प्रत्यक्षता नामक धर्म नहीं रहता है। आप मीमांसकों ने ज्ञान को सर्वथा परोक्ष माना है, अत: प्रत्यक्षता उसका धर्म हो नहीं सकती है।
पुनश्च-हम आपसे पूछते हैं कि जब आप ज्ञान को सर्वथा परोक्ष मानते हैं
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