Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 1
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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प्रात्माप्रत्यक्षत्ववाद पूर्वपक्ष मीमांसक का दूसरा भेद प्रभाकर है, यह ज्ञान के साथ आत्मा को भी परोक्ष मानता है, इसका मंतव्य है कि आत्मा कर्ता, और करणज्ञान ये दोनों ही सर्वथा परोक्ष हैं । हमारे भाई भाट्ट ज्ञान को परोक्ष मानकर भी आत्मा को प्रत्यक्ष होना कहते हैं, सो बात ठीक नहीं है, क्योंकि जब ज्ञान परोक्ष है तो उसका आधार आत्मा भी कैसे प्रत्यक्ष हो सकता है । अर्थात् नहीं हो सकता। हम लोग अतीन्द्रिय ज्ञानी को भी नहीं मानते हैं । अतः सर्वज्ञ के द्वारा भी आत्मा का प्रत्यक्ष होना हम लोग स्वीकार नहीं करते, अतीन्द्रिय वस्तु का ज्ञान वेद से भले ही हो जाय, किन्तु ऐसा आत्मादिक अतीन्द्रिय वस्तु का साक्षात्कार कभी किसी को भी नहीं हो सकता है । यह अटल सिद्धान्त है । "अहं ज्ञानेन घट वेदिम" इस वाक्य में "अहं' कर्ता और ज्ञानेन-करण ये दोनों ही अप्रत्यक्ष हैं। सिर्फ घटं-कर्म, और वेद्मि क्रिया प्रत्यक्ष हुआ करती है। अनुभव में भी यही आता है कि जो इन्द्रियों से ग्रहण नहीं होता वह तो परोक्ष ही है। जैन आत्मा को प्रत्यक्ष होना बताते हैं, अतः वे अात्मप्रत्यक्षवादी कहलाते हैं, किन्तु हमको यह कथन असंगत लगता है। हम तो आत्मा को परोक्ष ही मानते हैं ।
* पूर्वपक्ष समाप्त *
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