Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 1
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
View full book text
________________
ज्ञानान्तरवेद्यज्ञानवादः
स्वपरप्रकाशात्मकत्वं हि ज्ञानसामान्यस्वभावो न पुनविशिष्ट विज्ञानस्यैव धर्मः । तत्र तस्योपलम्भमात्रा त्तद्धर्मत्वे भानौ स्वपरप्रकाशात्मकत्वोपलम्भात् प्रदीपे तत्प्रतिषेधप्रसङ्गः । तत्स्वभावत्वे तद्वत्तेषां निखिलार्थवेदित्वानुषङ्गश्च ेत्; तर्हि प्रदीपस्य स्वपरप्रकाशात्मकत्वे भानुवन्निखिलार्थोद्योतकत्वानुषङ्गः किन्न स्यात् ? योग्यतावशात्तदात्मकत्वाविशेषेपि प्रदीपादेनियतार्थोद्योतकत्वं ज्ञानेपि समानम् । ततो
ज्ञान स्वभाव को हमारे जैसे सामान्य मनुष्य के ज्ञान में जोड़ता है वह व्यक्ति बुद्धिमान नहीं कहलाता है, यदि ईश्वर के ज्ञान का स्वभाव हमारे ज्ञान के साथ लागू करते हो तो ईश्वर का ज्ञान जिसप्रकार संपूर्ण पदार्थों का जाननेवाला है वैसा ही हमारा ज्ञान भी संपूर्ण पदार्थों को जानने वाला हो जावेगा ।
३६३
जैन - यह कथन भी असार है, हम तो यहां स्वभाव का अवलंबन लेकर कह रहे हैं, क्योंकि स्वभाव तो सभी ज्ञानों का स्वपर प्रकाशक है, किसी खास विशेष ज्ञान का नहीं यदि कहा जाय कि महेश्वर ज्ञान में स्व पर प्रकाशक स्वभाव की उपलब्धि होती है, अतः सिर्फ उसी में वह स्वभाव माना जाय तो सूर्य में स्व पर प्रकाशकपना उपलब्ध है, अतः मात्र उसी में वह है प्रदीप में नहीं है ऐसा भी मानना पड़ेगा किन्तु ऐसा तो है नहीं ।
योग - यदि ईश्वर के ज्ञान के स्वभाव को हम जैसे सामान्य व्यक्ति के ज्ञान में लगाते हो तो ईश्वर के ज्ञानका स्वभाव तो संपूर्ण वस्तुनों को जानने का है, वह भी हमारे ज्ञान में जोड़ना पड़ेगा ।
जैन - तो फिर सूर्य में स्वपर प्रकाशकता और संपूर्ण पदार्थों को प्रकाशित करना ये दोनों धर्म हैं अतः दीपक में भी दोनों धर्म मानना चाहिये, फिर क्यों दीपक में सिर्फ स्वपरप्रकाशकपना मानते हो, यदि कहा जाय कि योग्यता के वश से दीपक में एक स्वपरप्रकाशकपना ही है, संपूर्ण पदार्थों को प्रकाशित करने की उसमें योग्यता नहीं है, इसीलिये वह नियत पदार्थों को प्रकाशित करता है ? सो यह कहना भी ठीक नहीं है क्योंकि फिर ज्ञान में भी यही न्याय रह प्रावे ? अर्थात् महेश्वर के ज्ञान में तो संपूर्ण पदार्थों को प्रकाशित करना और स्वयं को प्रकाशित करना ऐसे दोनों ही धर्म( स्वभाव ) - पाये जाते हैं और हम जैसे व्यक्ति के ज्ञान में स्वयं के साथ कुछ ही पदार्थों को जानने की योग्यता है, सबको जानने की योग्यता नहीं है, इस तरह दीपक और सूर्य के समान हम जैसे अल्पज्ञानी और ईश्वर जैसे पूर्णज्ञानी में अन्तर मानना
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org