Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 1
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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प्रमेय कमलमार्त्तण्डे
त्वादिधर्मोपेतो विग्रहोपि प्रतिभासते । उपचारश्च निमित्तं विना न प्रवर्तते इत्यात्मोपकारकत्वं निमित्तं कल्प्यते भृत्यवदेव । ' मदीयो भृत्यः' इतिप्रत्ययभेदवत् 'मदीयं शरीरम्' इति प्रत्ययभेदस्तु मुख्यः ।
यच्चोक्तम् - रूपादिवत्तत्स्वभावानवधारणात्; तदयुक्तम्; 'ग्रहम्' इति तत्स्वभावस्य प्रतिभासनात् । न चार्थान्तरस्यार्थान्तरस्वभावेनाप्रत्यक्षलां दोषः, सर्वपदार्थानामप्रत्यक्षताप्रसङ्गात् । अथात्मनः कर्तृत्वादेकस्मिन् काले कर्मत्वासम्भवेनाप्रत्यक्षत्वम्; तन्न; लक्षणभेदेन तदुपपत्तेः,
जैसे कि अत्यन्त उपकारक नौकर के लिये हम कह देते हैं कि अजी "मैं ही यह हूं" और कोई पराया व्यक्ति नहीं है, इत्यादि ।
चार्वाक - नौकर को तो ऐसा भी कहा जाता है कि यह मेरा नौकर है । जैन - तो वैसे ही शरीर को भी कहा जाता है कि यह मेरा शरीर है इत्यादि यहां पर जो भिन्नता है वह तो वास्तविक ही है, मतलब - ' मैं कृश हूं" इत्यादि प्रतीति में अपना तो उपचारमात्र है किन्तु " मेरा शरीर है" यह प्रतिभास तो सत्य है, आप चार्वाक ने कहा था कि रूप आदि की तरह आत्मा का स्वभाव अवधारित नहीं होता इत्यादि वह कथन प्रयुक्त है, आत्मा का स्वभाव तो "अहं - मैं" इस प्रकार के प्रतिभास से अवधारित हो रहा है । भिन्न स्वभाववाले पदार्थ का भिन्न किसी अन्य स्वभाव से प्रत्यक्षपना न हो तो उसको नहीं माना जाय ऐसी बात नहीं है. अन्यथा तो सभी पदार्थ अप्रत्यक्ष हो जायेंगे। क्योंकि किसी एकरूप या ज्ञान आदि का अन्य दूसरे रस आदि स्वभाव से प्रतिभास तो होता नहीं है ।
चार्वाक - ६- आत्मा कर्ता है अतः एक ही काल में वह कर्मरूप से प्रतीत नहीं होता इसीलिये उसका प्रत्यक्ष नहीं हो पाता अर्थात् "ग्रहं" यह तो कर्तृत्वरूप प्रतिभास है, आत्मा को जानता हूं या स्वयं को जानता हूं ऐसे कर्मपनेरूप से उसका प्रतिभास उस अहं प्रत्यय के समय कैसे होगा ।
जैन - ऐसा नहीं कहना, लक्षण भेद होने से कर्तृत्व प्रादि की व्यवस्था बन जाती है | कर्तृत्व का लक्षण स्वातन्त्र्य है, "स्वतन्त्रः कर्त्ता" इस प्रकार का व्याकरण का सूत्र है । तथा वह कर्तृत्व ज्ञान क्रिया से व्याप्त होकर उपलब्ध होता है, अतः कर्मत्व भी आत्मा में श्रविरुद्ध ही रहेगा कर्म का लक्षण तो "क्रिया व्याप्तं कर्म" जो क्रिया से व्याप्त हो वह कर्म है ऐसा है । सो आत्मा में जानने रूप क्रिया व्याप्त है अतः वह
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