Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 1
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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भूतचैतन्यवादः धारणेरणद्रवोष्णतालक्षणेन रूपादिमत्त्वस्वभावेन वा भूतस्वभावेनान्वितः प्रमाणप्रतिपन्नः, चैतन्यस्य धारणादिस्वभावरहितस्यान्तःसंवेदनेनानुभवात् । न च प्रदीपाशु पादानेन कज्जलादिना प्रदीपाद्यनन्वितेन व्यभिचारः; रूपादिमत्त्वमात्रेणात्राप्यन्वयदर्शनात् । पुद्गलविकाराणां रूपादिमत्त्वमात्राव्यभिचारात् । भूतचैतन्ययोरप्येवं सत्त्वादिक्रियाकारित्वादिधर्मैरन्वयसद्भावात् उपादानोपादेयभावः स्यादित्यप्यसमीचीनम् ; जलानलादीनामप्यन्योन्यमुपादानोपादेयभावप्रसङ्गात्, तद्धमैस्तत्राप्यन्वयसद्भावाविशेषात् ।
किञ्च, 'प्राणिनामाद्य चैतन्य चैतन्योपादान कारणकं चिद्विवर्त्तत्वान्मध्यचिद्विवर्तवत् । तथान्त्यचैतन्यपरिणामश्च तन्यकार्यस्तत एव तद्वत्' इत्यनुमानात्तस्य चैतन्यान्तरोपादानपूर्वकत्व सिद्धर्न भूतानां चैतन्यं प्रत्युपादानकारणत्वकल्पना घटते । सहकारिकारणत्वकल्पनायां तु उपादानमन्यद्वासकता, मतलब-किसी पुद्गल में रूपादिगुण हों और किसी में नहीं हों ऐसा नहीं होता है।
चार्वाक - ऐसा अन्वय तो भूत और चैतन्य में भी हो सकता है, अर्थात् सत्व, क्रियाकारित्व आदि धर्म भूत और चैतन्य में समानरूप से पाये जाते हैं । अतः इनमें उपादान उपादेयभाव-भूतचतुष्टय उपादान और चैतन्य उपादेय- इस प्रकार होने में कोई बाधा नहीं है।
जैन - यह कथन असमीचीन है, इस प्रकार का सत्त्व आदिमात्र का अन्वय देखकर भूत और चैतन्य में उपादान उपादेयपना स्वीकार करोगे तो जल और अग्नि आदि में भी उपादान उपादेय भाव सिद्ध होगा, क्योंकि सत्त्व आदि धर्म जैसे जल में हैं वैसे वे अग्नि में हैं, फिर क्यों तुम लोग इन तत्त्वों को सर्वथा पृथक् मानते हो। अब हम अनुमान से चैतन्य के वास्तविक उपादान की सिद्धि करते हैं
प्राणियों का आद्य चैतन्य चैतन्यरूप उपादान से हुआ है, जैसे कि मध्य अवस्था का चैतन्य चैतन्यरूप उपादानसे होता है, तथा अंतिम चैतन्य (उस जन्म का चैतन्य ) भी पूर्व चैतन्य का ही कार्य है, क्योंकि उसमें भी चैतन्यधर्म पाया जाता है, इस प्रकार के अनुमान से चैतन्य का उपादान चैतन्यान्तर ही सिद्ध होता है, भूतचतुष्टय चैतन्य के प्रति उपादान नहीं बन सकता है, इस प्रकार यहां तक भूतों से चैतन्य उत्पन्न होता है इस वाक्य का विश्लेषण करते हुए पूछा था कि चैतन्य का कारण जो भूत है वह उसका उपादान कारण है कि सहकारी कारण ? उनमें से उपादान कारणपना भूतचतुष्टय में नहीं है यह सिद्ध हुआ।
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