Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 1
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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भूत चैतन्यवादः
३०६ कथञ्चित्सतोऽसतश्चाभिव्यक्ती परमतप्रवेशः - कथञ्चिद्रव्यतः सतश्चैतन्यस्य पर्यायतोऽसतच कायाकारपरिणतैः पृथिव्यादिपुद्गलैः परैरप्यभिव्यक्त रभीष्टत्वात् पृथिव्यादिभूतचतुष्टयवत् । नन्वेवं पिष्टोद
काम है और “असत: स्वरूप निर्वर्तकं" कारकं सत् का काम है, इस प्रकार इनमें लक्षणभेद प्रसिद्ध ही है ।
स्वरूप को बनाना कारक कारण
भावार्थ::- व्यञ्जक कारण दीपक के समान होते हैं जो पहिले से मौजूद हुए पदार्थ को मात्र प्रकट करते हैं, जैसे-अंधेरे में घट का स्वरूप दिख नहीं रहा था सो उसके स्वरूप को दीपक ने दिखा दिया । कारककारण मिट्टी या कुम्हार के समान होते हैं जो नवीन - पहिले नहीं हुई अवस्था को रचते हैं, चार्वाक यदि चैतन्य की अभिव्यक्ति होना मानते हैं तब तो वे भूतचतुष्टय स्वरूप शरीरादिक मात्र चैतन्य के अभिव्यंजक होंगे - अर्थात् चैतन्य कहीं अन्यत्र था वह आकर शरीरादिक में प्रकट हुआ ऐसा सिद्ध होता है । तीसरा पक्ष - सत् असत् रूप चैतन्य की अभिव्यक्ति होती है - यदि ऐसा कहा जाय - तो आप चार्वाक स्पष्टरूप से ही जैन बन जाते हैं । हम जैन कथंचित् द्रव्यदृष्टि से सत्रूप चैतन्य है और पर्यायदृष्टि से असत् रूप चैतन्य है ऐसा मानते हैं । यहां पर वैसे ही शरीर के आकार से परिणत हुए पृथिवी आदि पुद्गल से चैतन्य का व्यक्त होना श्रापको इष्ट हो रहा है, इसलिये चैतन्य भी पृथिवी आदि भूतचतुष्टय के समान है अर्थात् जैसे पृथिवी आदि भूतद्रव्य पुद्गलरूप से सत् हैं और घट आदि पर्याय से प्रकट होते हैं वैसे ही चैतन्य द्रव्य से तो सत् है और पर्यायरूप से - अवस्था विशेष से प्रकट होता है यह जैनमत सिद्ध होता है ।
शंका:- यदि इस प्रकार से अभिव्यक्ति का अर्थ करते हो तो फिर घाटा, जल आदि से मद शक्ति प्रकट होती - अभिव्यक्त होती है ऐसा भी सिद्ध नहीं होया । क्योंकि वहां पर भी वे ही विकल्प उपस्थित हो जायेंगे कि पहिले मद शक्ति सत् थी कि सत्थी, इत्यादि ?
समाधान - यह शंका गलत है । क्योंकि हम जैन मद शक्ति को भी द्रव्यदृष्टि से सत्रूप मानते हैं । सारे ही विश्व के पदार्थ सत्रूप से अनादि अनन्त माने गये हैं । भावार्थ - जैन धर्म का यह अकाट्य सिद्धान्त है कि जीव आदि प्रत्येक पदार्थ किसी न किसी रूपमें हमेशा मौजूद ही रहता है । सृष्टिरचना की कल्पना इसलिये असत्य ठहरती है, प्रत्येक वस्तु स्वतः अनादि अनन्तरूप है । उसमें परिवर्तन
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