Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 1
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
View full book text
________________
३१२
प्रमेयकमलमार्तण्डे च्यम्, अनुपादानस्य कस्यचित्कार्यस्यानुपलब्धेः । शब्दविद्य दादेरनुपादानस्याप्युपलब्धेरदोषोयमित्यप्यपरीक्षिताभिधानम् ; 'शब्दादिः सोपादानकारणकः कार्यत्वात् पटादिवत्' इत्यनुमानात्तत्सादृश्योपादानस्यापि सोपादानत्वसिद्धः।
गोमयादेरचेतनाच्च तनस्य वृश्चिकादेरुत्पत्तिप्रतीतिः तेनानेकान्तः इत्ययुक्तम् ; तस्य पक्षान्तभूतत्वात् । वृश्चिकादिशरोरं ह्यचेतनं गोमयादेः प्रादुर्भवति न पुनर्वृश्चिकादिचेतन्यविवर्तस्तस्य पूर्वचैतन्य विवर्त्तादेवोत्पत्तिप्रतिज्ञानात् । अथ यथाद्यः पथिकाग्निः अरणिनिर्मन्थोत्थोऽनग्निपूर्वकः
__ यदि भूतचतुष्टय चैतन्य के मात्र सहकारी माने जायें तो चैतन्य का उपादान कारण कोई न्यारा बताना होगा, क्योंकि विना उपादान के कोई कार्य उपलब्ध नहीं होता है।
चार्वाक-शब्द, बिजली आदिक पदार्थ तो विना उपादान के ही उत्पन्न होते हैं । वैसे ही चैतन्य विना उपादान का उत्पन्न हो जायगा । कोई दोष नहीं ।
जैन--यह तो कथन मात्र है, क्योंकि शब्द आदि पदार्थ भी उपादान कारण संयुक्त है । अनुमान प्रयोग-शब्द बिजली आदि वस्तुएं उपादान कारण सहित हुआ करती हैं, क्योंकि वे कार्य हैं, जैसे पट किसी का कार्य है तो उसका उपादान धागे मौजूद ही हैं । इस अनुमान से चेतन सदृश्य चैतन्य का उपादान निर्बाध सिद्ध होता है।
चार्वाक-गोबर आदि अचेतन वस्तुओं से चेतनस्वरूप बिच्छु आदि जीव पैदा होते हैं, अतः चेतन का उपादान चेतन ही है, इस प्रकार का कथन अनैकान्तिक दोष से दुष्ट होगा । अर्थात् - "प्राणियों का प्रथम चैतन्य चैतन्यरूप उपादान से ही हुआ है, क्योंकि वह चैतन्य की ही पर्याय है" इस अनुमान में चैतन्य की पर्याय होने से वह चैतन्योपादानवाला है ऐसा हेतु दिया था वह अनैकान्तिक हुआ, क्योंकि यहां अचेतन गोबर से चेतन बिच्छु की उत्पत्ति हुई है।
जैन-यह कथन प्रयुक्त है, क्योंकि उस बिच्छु के चैतन्य को भी हमने पक्ष के ही अन्तर्गत किया है, देखो-बिच्छु आदि का शरीर मात्र गोबर से पैदा हुआ है, बिच्छु का चैतन्य उससे पैदा नहीं हुआ है, क्योंकि वह तो पूर्व चैतन्य पर्याय से ही उत्पन्न हुआ माना गया है।
चार्वाक-जैसे कोई पथिक रास्ते में अग्नि को जंगल की सूखी अरणि की रगड़ से उत्पन्न करता है, तो वहां वह अग्नि अग्नि से पैदा नहीं हुई होती है, ठीक इसी
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org