Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 1
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
View full book text
________________
प्रमेयक मलमार्त्तण्डे
नापि विषयगुण; तदसान्निध्ये तद्विनाशे चानुस्मृत्यादिदर्शनात् । न च गुणिनोऽसान्निध्ये. विनाशे वा गुरणानां प्रतीतिर्युक्ता गुणत्वविरोधानुषङ्गात् । ततः परिशेषाच्छरीरादिव्यतिरिक्ताश्रयाश्रितं चैतन्यमित्यतो भवत्येवात्मसिद्धिः ।
३०६
ततो निराकृतमेतत् - 'शरीरेन्द्रियविषयसंज्ञेभ्यः पृथिव्यादिभूतेभ्यश्चंतन्याभिव्यक्तिः, पिष्टोदकगुडधातक्यादिभ्यो मदशक्तिवत्' । ततोऽसाधारणलक्षणं विशेष विशिष्टत्वेप्यतत्त्वा (तस्तत्त्वा) न्तरत्वमेव ।
नहीं है, क्योंकि वह करण है, जैसे वसूला आदि करण होते हैं। यदि आप मन को कर्त्तापने से स्वीकार करेंगे तो उस चैतन्यगुरणवाले मनको कोई अन्य करण चाहिये, जिसके द्वारा कि रूप आदि विषयों की उपलब्धि वह कर सके इस करणांतर की अपेक्षा को हटाने के लिये फिर आप उन सब करणों का एक प्रेरक कोई स्थापित करोगे तो वही नाम मात्र का भेद होवेगा कि आप उसको इन्द्रिय या अन्य कोई नाम से कहोगे और हम जैन आत्मा नाम से उसको कहेंगे ।
चैतन्य रूप आदि विषय भूत पदार्थों का भी गुण नहीं है, रूपादि विषय चाहे निकट न रहें चाहे नष्ट हो जावें तो भी चैतन्य के अनुभव स्मृति आदि कार्य होते ही रहते हैं, गुणी के निकट न होने पर अथवा नष्ट हो जाने पर गुण तो रहते नहीं, यदि गुणी नहीं होने पर गुण रहते हैं तो इसके ये गुण हैं ऐसा कैसे कहा जा सकेगा, इस सब कथन से यह सिद्ध हो जाता है कि चैतन्य न शरीर का गुरण है न मन का गुण है, न इन्द्रियों का गुण है और न विषय भूत पदार्थों का ही गुरण है, वह तो अन्य ही आश्रय में रहने वाला गुण है, और उसी आश्रयभूत का नाम आत्मा है, इस प्रकार आत्मद्रव्य की प्रसिद्धि प्रवस्थित है ।। उपर्युक्त आत्मद्रव्य के सिद्ध होने पर चार्वाक का भूतचैतन्यबाद समाप्त हो जाता है । अर्थात् शरीर, इन्द्रिय और विषय संज्ञक इन पृथिवी आदि भूतों से चैतन्य प्रकट होता है, जैसे कि आटे, जल, गुड़, धातकी, महुआ आदि पदार्थों से मद शक्ति पैदा होती है सो ऐसा यह कथन असत्य ठहरता है, इसलिये अब यह सिद्ध ही हुआ किअसाधारण लक्षण विशेष से विशिष्ट होने से आत्मा एक सर्वथा पृथक ही तत्व है, इस प्रकार असाधारण लक्षण- ज्ञान दर्शन उपयोग वाला आत्मा नामक भिन्न द्रव्य है यह निर्बाध सिद्ध हुआ ।
चार्वाक के ग्रन्थ में लिखा है कि पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि ये चार तत्त्व हैं, इनके समुदाय होने पर शरीर इंद्रियां विषय आदि उत्पन्न होते हैं, और इन शरीर आदि
ワ
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org