Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 1
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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प्रमेयकमलमार्तण्डे
किञ्च, अस्य वादिनोऽर्थेन संवित्तेर्घटनाऽन्यथानुपपत्तोः सन्निकर्ष. प्रमाण म्, अधिगति: फलं स्यात्, तस्यास्तमन्तरेण प्रतिनियतार्थसम्बन्धित्वासम्भवात् । साकारसंवेदनस्य अखिलसमानार्थसाधारणत्वेन अनियतार्थंर्घटनप्रसङ्गात् निखिलसमानार्थानामेकवेदनापत्तिः, केनचित्प्रत्यासत्तिविप्रकर्षासिद्धः।
कहना होगा, क्योंकि विना सन्निकर्ष के संवित्तिका पदार्थ के प्रति नियमित संबंध होना संभव नहीं है । यदि ज्ञान में पदार्थ का आकार मौजूद है-जान साकार है तो उस किसी एक विवक्षित घट आदि का आकार ज्ञान में आते ही उस घट के समान अन्य जगत के सारे ही घटों का जानना उस एक ज्ञान के द्वारा ही संपन्न हो जावेगा। क्योंकि आकार तो ज्ञान के अन्दर मौजूद है ही, इससे किसी भी ज्ञान का किसी भी वस्तु के साथ न निकटपना है और न दूरपना ही है।
भावार्थ-ज्ञान में वस्तु का आकार होने से उसी वस्तु को वही ज्ञान जानता है ऐसा नियम बौद्ध के यहां स्वीकार किया है, इस पर प्राचार्य दोष दिखाते हुए समझा रहे हैं कि ज्ञान में वस्तु का आकार है तो फिर किसी एक वस्तु को साकार होकर जानते समय अन्य जितनी भी उसके समान वस्तुएँ संसार में होंगी उन सबको वह एक ही ज्ञान झट से जान लेगा। क्योंकि सबकी शकल समान है। और वह उसी एक ज्ञान में मौजूद है । एक वस्त्र को जानते ही उसके समान अन्य सभी वस्त्र यों ही जानने में आ जायेंगे, किन्तु ऐसा नहीं देखा जाता है, अत: साकारज्ञानवाद में दोष ही दोष भरे पड़े हैं ॥ बौद्ध ज्ञान को पदार्थ से उत्पन्न हुआ भी मानते हैं । किन्तु इस तदुत्पत्ति का इन्द्रियादिक के साथ व्यभिचार देखा जाता है। अर्थात् ज्ञान इन्द्रियों से भी उत्पन्न होता है किन्तु वह इन्द्रियाकार तो होता ही नहीं, इसलिये यह नियम नहीं है कि ज्ञान जिससे पैदा होता है उसी का आकार धारता है।
बौद्ध-जहां पर तदुत्पत्ति और तदाकार दोनों ही होते हैं, अर्थात्-ज्ञान जिससे पैदा होता है और जिसके प्राकार होता है वहीं पर ज्ञान पदार्थ का नियामक बनता है इन्द्रियादिकों का नहीं, क्योंकि वह तदुत्पत्ति वाला तो है किन्तु तदाकार वाला नहीं है ।
जैन-यह बात असंगत है। देखिये-जहां पर ये दोनों संबंध-तदुत्पत्ति, तदाकार मौजूद हैं वहाँ पर भी वह ज्ञान उसका व्यवस्थापक नहीं होता है। क्योंकि समानार्थ समनन्तर प्रत्यय के साथ इसका व्यभिचार देखा जाता है, अर्थात्-समानार्थ
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