Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 1
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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विज्ञानाद्वैतवादः
२३६ इयं यद्यप्रमारणं कथमतस्तत्सिद्धिरतिप्रसङ्गात् ? प्रमाणं चेत्; तहि स्वपरग्रहणस्वरूपताप्यस्य तथैवास्त्वलं तत्रापि तद्विकल्पकल्पनया प्रत्यक्षविरोधात् । तन्न स्वतोऽवभासमानत्वं हेतुरसिद्धत्वात् ।
____नापि परतो वाद्यसिद्धत्वात् । न खलु सौगतः कस्यचित्परतोऽवभासमानत्व मिच्छति । "नान्योऽनुभाव्यो बुद्धयास्ति तस्या नानुभवोपरः" [प्रमाणवा० ३ ३२७ ] इत्यभिधानात् । कथं च कि ज्ञान ही ज्ञान का स्वरूप है ? उसी तरह से प्रतीति आती है इसलिये कहो, तो भी वह प्रतीति यदि झूठी-अप्रमाणरूप है तब तो उससे ज्ञान के स्वरूप की सिद्धि नहीं होवेगी, यदि अप्रामाणिक प्रतीति से व्यवस्था होती हो तो संशयादि रूप प्रतीति से भी ज्ञान स्वरूप की सिद्धि होने का अतिप्रसंग पाता है, ज्ञान के स्वरूप को ग्रहण करने वाली प्रतीति यदि प्रमाणभूत है तो बड़ी अच्छी बात है, फिर उसी प्रतीति के द्वारा ज्ञान में स्वपर प्रकाशक स्वरूप भी सिद्ध हो जायगा, कोई उसमें बाधा नहीं है, उस ज्ञान के पदार्थ ग्रहण करने रूप स्वभाव में किसी प्रकार के विकल्प-प्रश्न या कल्पना करना ठीक नहीं होगा, क्योंकि प्रत्यक्ष से प्रतीति होने पर प्रश्न करना तो प्रत्यक्ष विरोधी बात कहलावेगी इस प्रकार पदार्थों का अभाव सिद्ध करने के लिये दिया गया स्वत: अवभासमानत्व हेतु असिद्ध हो जाता है।
__ अवभासमानत्व हेतु को पर से यदि अवभासित होना मानते हो तो आप वादी के यहां हेतु प्रसिद्ध होगा, क्योंकि आप सौगत ने किसी भी वस्तु का पर से प्रतिभासित होना नहीं माना है, लिखा भी है कि बुद्धि द्वारा अनुभाव्य-अनुभव करने योग्य कोई पृथक् पदार्थ नहीं है, तथा उस बुद्धि को जानने वाला भी कोई नहीं है, इत्यादि । भावार्थ- ..
नान्योऽनुभाव्यस्तेनास्ति तस्या नानुभवोऽपरः ।। तस्यापि तुल्यचोद्यत्वात् स्वयं सैव प्रकाशते ॥
प्रमाणवाति० ३।३२७ बौद्धाभिमत प्रमाणवातिक ग्रन्थ में लिखा है कि हम बौद्ध उसी कारण से बुद्धि द्वारा अनुभव करने योग्य किसी को नहीं मानते हैं, फिर प्रश्न होता है कि उस बुद्धि को अनुभव करनेवाला कौन होगा ? जो होगा उसमें फिर से ग्राह्य ग्राहक भाव मानना पड़ेगा, इसलिये जो भी कुछ पर है वह सब संवेदन-ज्ञान में अन्तर्भूत है, इस प्रकार से एक बुद्धि-(ज्ञान) मात्र स्वयं अपने आप प्रकाशमान है, और कुछ भी अन्य पदार्थ नहीं है, इस प्रकार इस श्लोक द्वारा जब पर वस्तु का ही प्रभाव
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