Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 1
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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विज्ञानाद्वैतवादः
२३७ स्वरूपमात्रग्राह्य व ज्ञानं नार्थग्राहि; इत्यप्यसमीचीनम् ; स्वार्थग्रहणकस्वभावत्वाद्विज्ञानस्य । स्वभावतद्वत्पक्षोपक्षिप्तदोषपरिहारश्च स्वसंवेदनसिद्धौ भविष्यतीत्यलमतिप्रसङ्गन ।
कथञ्च वंवादिनो रूपादेः सजातीयेतरकर्तृत्वम् तत्राप्यस्य समानत्वात् ? तथा हि-रूपादिकं लिङ्ग वा यया प्रत्यासत्त्या सजातीयक्षणं जनयति तयैव चेद्रसादिकमनुमानं वा; तर्हि तयोरैक्यमित्यन्यतरदेव स्यात् । अथान्यया; तहि रूपादेरेकस्य स्वभावद्वयमायातं तत्र चानवस्था परापरस्वभावद्वयकल्पनात् । न खलु येन स्वभावेन रूपादिकमेकां शक्ति बिभर्ति ते वापरां तयोरैक्यप्रसङ्गात् । अथ रूपादिकमेकस्वभावमपि भिन्नस्वभावं कार्यद्वयं कुर्यात्तत्करणकस्वभावत्वात् ; तर्हि ज्ञानमप्येकस्वभाव स्वार्थयोः सङ्कव्यतिकरव्यतिरेकेण ग्राहकमस्तु तद्ग्रहणकस्वभावत्वात् । ननु समय कहने वाले हैं। अब विज्ञानाद्वैतवाद के विषय में अधिक क्या कहें-इतना ही बस है।
अद्वैतवादी ज्ञान में दो स्वभाव मानने में दोष देते हैं, पर उनके यहां पर भी ऐसे दो स्वभाव एक वस्तु में हैं, देखिये –वे कहते हैं कि रूप आदि गुण उत्तरक्षणवाले सजातीयरूप को तथा विजातीय रस को पैदा करते हैं, इसलिये उसमें वही अनवस्था आदि दोष आवेंगे । हम जैन आपसे पूछते हैं कि रूप हो अथवा हेतु हो वह जो उत्तर क्षणवर्ती रस तथा रूप को और हेतु तथा अनुमान को पैदा करते हैं सो जिस शक्तिस्वभाव से रूप उत्तर क्षणवर्ती रस को पैदा करता है उसी शक्तिस्वभाव से रूप ज्ञान को भी पैदा करता है क्या ? तथा जिस शक्ति से हेतु उत्तरक्षणवर्ती हेतु को पैदा करता है उसी शक्ति से अनुमान को भी उत्पन्न करता है क्या ? यदि एक शक्ति से ऐसे सजातीय और विजातीय कार्य करता है तो उनमें एकमेकपना होकर दोनों में से एक ही कोई रह जायगा, वे रूपादिपूर्ववर्ती कारण किसी अन्यशक्ति से तो रूप को और किसी अन्य शक्ति से रस को पैदा करते हैं ऐसा कहो तब उन रूप लिङ्ग आदि में दो स्वभाव आ गये ? फिर उन दोनों स्वभावों को किन्हीं अन्य दो स्वभावों से धारण करेंगे, इस प्रकार स्वभावों की कल्पना बढ़ती जाने से अनवस्था दोष आता है। रूपादि क्षण जिस एक स्वभाव से एक शक्ति को धारण करते हैं उसी से अन्य शक्ति को तो धार नहीं सकेंगे क्योंकि ऐसा मानने पर उन रूप रस आदि में एकता हो जायगी भिन्नता नहीं रहेगी।
शंका-रूप आदि पूर्ववर्ती कारण एक स्वभाववाले भले ही होवें, किन्तु उनमें भिन्न २ स्वभाव वाले दो कार्य करने रूप ऐसा ही एक स्वभाव है।
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