Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 1
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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अचेतनज्ञानवादका पर्वपक्ष
सांख्य ज्ञान को जड़ मानते हैं, उनका पूर्वपक्षरूप से यहां पर कथन किया जाता है-पुरुष और प्रकृति ये मूल में दो तत्त्व हैं, प्रकृति को प्रधान भी कहते हैं, प्रधान के दो भेद हैं, व्यक्त और अव्यक्त, अव्यक्त प्रधान सूक्ष्म और सर्वव्यापक है, व्यक्त प्रधान से [ प्रकृति से ] सारा जगत् रचा हुआ है, व्यक्त प्रधान से सबसे प्रथम महान् नामका तत्त्व उत्पन्न होता है, उसी महान् तत्त्व को बुद्धि या ज्ञान कहा गया है । कहा भी है-प्रकृतेर्महाँस्ततोऽहंकारस्तस्माद्गणश्च षोडशकः, तस्मादपि षोडशकात्पञ्चभ्यः पञ्चभूतानि ।। ( सांख्यत० कौ० पृ० ६४, २२ ) अर्थ-व्यक्त-प्रधान से महान् अर्थात् बुद्धि, बुद्धि से अहंकार, फिर उससे दश इन्द्रियां, आदि सोलह गण, उन सोलहगणों में अवस्थित पांच तन्मात्राओं से पांच महाभूत उत्पन्न होते हैं । ये ही पच्चीस तत्त्व हैं। इनमें एक पुरुष-चेतन और २४ प्रकृति जड़ के भेद हैं। प्रकृति का प्रथम भेद जो महान् है वही बुद्धि या ज्ञान है, जैसा कि कहा है-"तस्याः प्रकृते: महानुत्पद्यते, प्रथमः कश्चिद् ( महान्-बुद्धिः, प्रज्ञा मतिः संवित्तिः ख्यातिः, चिति:, स्मृतिः, आसुरी, हरिः हर:, हिरण्यगर्भः, इति पर्यायाः )
-माठरवृत्तिः गौडपाद भाष्य । । अर्थात् महान् को ही बुद्धि, स्मृति, मति, प्रज्ञा, संवित्ति आदि नामों से कहा जाता है । उस बुद्धि या ज्ञानका पुरुष अर्थात् जीवात्मा के साथ-चैतन्य के साथ संसर्ग होता है, अत: पुरुष में अर्थात् जीव या आत्मा में ही बुद्धि है ऐसा भ्रम होता है। बुद्धि और पुरुष अर्थात् ज्ञान और आत्मा का ऐसा संसर्ग है कि जैसे लोहे के गोले मैं अग्नि का है । जिस प्रकार चैतन्य पुरुष में रहता है और कर्तृत्व अन्तःकरण में रहता है फिर भी अन्तःकरण के धर्म का पुरुष में आरोप करके पुरुष को ही कर्ता मानने लग जाते हैं उसी प्रकार प्रकृति का धर्म जो बुद्धिरूप है उसका पुरुष में आरोप करके पुरुष को ही ज्ञाता कह देते हैं, कहा भी है- "तस्मात्ततु संयोगादचेतनं चेतनवदिव लिङ्गम्, गुणकर्तृत्वे ऽपि तथा कर्तेव भवत्युदासीनः" ॥ २० ॥ यस्माच्चेतनस्वभावः पुरुषः, तस्मात्तत्संयोगाद् अचेतनं महदादि लिङ्ग, अध्यवसाय, अभिमान-संकल्पअालोचनादिषु वृत्तिषु चेतनावत् प्रवर्तते । को दृष्टान्तः ? तद्यथा-अनुष्णाशीतो घटः
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