Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 1
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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विज्ञानाद्वैतवादः
२२६ किञ्चित्कृतमिति कथं तेनास्य ग्रहणम् ? तस्येयमिति सम्बन्धासिद्धिश्च । तयाप्यस्य गृहीत्यन्त. रकरणेऽनवस्था। अनर्थान्तरत्वे तु तत्करणेऽर्थ एव तेन क्रियते इत्यस्य ज्ञानता ज्ञान कार्यत्वादुत्तरज्ञानवत् । जडार्थोपादानोत्पत्तर्न दोषश्च त्, ननु पूर्वोऽर्थोऽप्रतिपन्नः कथमुपादानमतिप्रसङ्गात् ? प्रतिपन्नश्चेत्; किं समानकालाद्भिन्नकालाद्वत्यादिदोषानुषङ्गः। किञ्च, गृहीतिरगृहीता कथमस्तीति निश्चीयते ? अन्यज्ञानेन चास्या ग्रहणे स एव दोषोऽनवस्था च, ततोऽर्थो ज्ञानं गृही तिरिति त्रितयं स्वतन्त्रमाभातीति न परतः कस्यचिदवभासनमिति नासिद्धो हेतुः ।
है अतः वह ग्राहक है तो इस पर हम बौद्ध पूछते हैं कि वह गृहीति क्रिया ज्ञान के द्वारा पदार्थ से भिन्न की जाती है कि अभिन्न की जाती है ? यदि भिन्न की जाती है तो उस ज्ञान ने पदार्थ का कुछ भी नहीं किया, तो फिर उस भिन्न क्रिया से ज्ञान के द्वारा पदार्थ का ग्रहण कैसे होगा, तथा यह क्रिया उस पदार्थ की है यह संबंध भी कैसे बनेगा ? संबंध जोड़ने के लिये यदि अन्य गृहीति की कल्पना करते हो तो अनवस्था आती है। यदि गृहीति क्रिया अर्थ से अभिन्न की जाती है ऐसा कहते हो तो उसका अर्थ ऐसा निकलेगा कि ज्ञान के द्वारा पदार्थ किया गया, अर्थात् ज्ञान के द्वारा जो पदार्थ की गहीति की जाती है वह पदार्थ से अभिन्न की जाती है तो गहीति से अभिन्न होने के कारण पदार्थ ग्रहण हुआ याने पदार्थ किया गया ऐसा अर्थ निकलेगा, इस तरह ज्ञान से उत्पन्न होने से पदार्थ ज्ञान रूप हुग्रा, क्योंकि वह ज्ञान का कार्य है जैसा कि उत्तर ज्ञान पूर्वज्ञान से उत्पन्न होने से उसका कार्य होता है। इसलिये वह ज्ञानरूप होता है, यदि कोई कहे कि पदार्थ का उपादान तो जड़ होता है उससे पदार्थ उत्पन्न होते हैं अत: ज्ञान से पदार्थों के पैदा होने का प्रसंग ही नहीं प्राता तो यह कथन भी ठीक नहीं, क्योंकि पूर्व पदार्थ भी यदि अज्ञात है तो वह उपादान बन नहीं सकता अन्यथा अज्ञात घोड़े के सींग आदि भी उसके उपादान बनेंगे। यदि कहा जाय कि पूर्व पदार्थ अज्ञात नहीं है तो कहो वह किस ज्ञान से जाना हुआ हैक्या समकालीन ज्ञान से कि भिन्नकालीनज्ञान से इत्यादि प्रश्न और पूर्वोक्त ही दोष यहां उपस्थित होवेगे । दूसरी बात यह है कि वह गृहीति क्रिया यदि अगृहीत हैअज्ञात है तो उसका अस्तित्व-वह है ऐसा उसका सद्भाव-कैसे निश्चित होगा, यदि किसी अन्यज्ञान से गृहीति का ग्रहण होना मानो तो भिन्न काल समकाल इत्यादि प्रश्न तथा अनवस्था आदि दोष उपस्थित हो जाते हैं । इसलिये यह मालूम होता है कि पदार्थ, ज्ञान और गृहीतिक्रिया ये तीनों ही स्वतन्त्ररूप से प्रतिभासित होते हैं,
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