Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 1
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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प्रमेयकमलमार्तण्डे
आदिक उत्पन्न होते हैं, तब उनमें कारणगुण के अनुसार सत्त्व, रज और तम ये तीन गुण पैदा हो जाया करते हैं, इन्हीं आकाश आदि को सूक्ष्मभूत, तन्मात्रा और अपञ्चीकृत इन नामों से कहा जाता है, इन्हीं आकाश, वायु प्रादि से सूक्ष्मशरीर तथा स्थूलभूत पैदा होते हैं । सूक्ष्मशरीर के १७ भेद हैं। "अवयवास्तु ज्ञानेन्द्रियपंचकं, बुद्धिमनसी, कर्मेन्द्रियपंचकं, वायुपंचकं च" ॥-पांच ज्ञानेन्द्रियां-स्पर्शन, रसना, घ्राण, चक्षु और कर्ण-, वचन, हाथ, पाद, पायु और उपस्थ ये पांच कर्मेन्द्रियां तथा-बुद्धि, मन, पांच वायु-प्राणवायु, अपानवायु, उदानवायु, व्यानवायु और समानवायु-ये १७ अवयव या भेद सूक्ष्म शरीर कहलाते हैं । दिखाई देनेवाले जो पृथिवी आदि पदार्थ हैं वे स्थूलभूत हैं, इस प्रकार यह समस्त संसार एक ब्रह्म का कार्यरूप है, अर्थात् उसका भेदरूप है, सूक्ष्मशरीर के अवयव स्वरूप जो बुद्धि और मन हैं, वे जीव स्वरूप हैं। ऐसे सूक्ष्म शरीरादि तथा स्थूलभूतादिरूप विश्व की रचना है।
चौथे प्रश्न का समाधान
इन दृश्यमान पदार्थों का विनाश या प्रभाव होता है, इसी का नाम प्रलय या लय है, यह प्रलय भी स्वभाव से हुआ करता है, सृष्टि की उत्पत्ति के बाद प्रलय और प्रलय के बाद सृष्टि-रचना होने में युगानुयुग-अनगिनतीकाल-व्यतीत हो जाता है, जिस क्रम से सृष्टिकी रचना-उत्पत्ति हुई थी उसी क्रम से उसका प्रलय भी होता है, कहा भी है-“एतानि सत्त्वादिगुणसहितान्यपञ्चीकृतान्युत्पत्तिव्युत्क्रमेण तत्कारणभूताज्ञानोपहितचैतन्यमानं भवति, एतदज्ञानमज्ञानोपहितं चैतन्यञ्चेश्वरादिकमेतदाधारभूतानुपहितचैतन्यरूपं तुरीयं ब्रह्म मात्रं भवति"- सत्त्वादिगुण जो सूक्ष्म भूतादिक हैं उत्पत्ति के विपरीतक्रम से अपने कारणों में विलीन हो जाते हैं । अर्थात् पृथिवी जल में विलीन हो जाती है, जल अग्नि में, अग्नि वायु में, वायु आकाश में, आकाश अज्ञानरूप चैतन्य में तथा चैतन्य और ईश्वर भी तुरीय ब्रह्म में अन्तहित हो जाते हैं इस तरह सारा विश्व-ब्रह्माण्ड समाप्त होता है-शून्यरूप होता है। ___पांचवें प्रश्न का समाधान
मोक्ष-अर्थात् दुःखों से छूटने के लिए साधन इस प्रकार से बतलाये गये हैं"साधनानि-नित्यानित्यवस्तुविवेकेहामुत्रफलभोगविरागशमादिषट्कसंपत्तिमुमुक्षुत्वानि"नित्य और अनित्य वस्तु का विवेक, इस लोक संबंधी तथा परलोक संबंधी भोगों को
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