Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 1
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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स्मृतिप्रमोषविचारः
१५७
कश्चायं स्मृतेः प्रमोष:-किं स्मृतेरभावः, अन्यावभासो वा स्यात्, विपरीताकारवेदित्वं वा, अतीतकालस्य वर्तमानतया ग्रहणं वा, अनुभवेन सह क्षीरोदकवदविवेकेनोत्पादो वा प्रकारान्तरासम्भवात् ? तत्र न तावदाद्यः पक्षः; स्मृतेरभावे हि कथं पूर्वदृष्ट रजतप्रतीति: स्यात् ? मूर्छाद्यवस्थायां च स्मृतिप्रमोषव्यपदेशः स्यात् तदभावाविशेषात् । अथात्र 'इदम्' इति भासाभावान्नासौ; ननु ‘इदम्' इत्यत्रापि किं प्रतिभातीति वक्तव्यम् ? पुरोव्यवस्थितं शुक्तिकाशकलमिति चेत् ; ननु स्वधर्म विशिष्ट त्वेन तत्तत्र प्रतिभाति, रजतसन्निहितत्वेन वा ? प्रथमपक्षे कुतः स्मृतिप्रमोषः ? शुक्तिकाशकले हि स्वगतधर्मविशिष्ट प्रतिभासमाने कुतो रजतस्मरणसम्भवो यतोऽस्य प्रमोष: स्यात् ? न खलु घटे गृहीते पटस्मरणसम्भवः । अथ शुक्तिकारजतयोः सादृश्याच्छुक्तिकाप्रतिभासे रजतस्मरणम् ;
झलकता ही नहीं अतः वहां स्मृति प्रमोषताका प्रसंग प्राप्त नहीं होता है। तो प्रश्न होता है कि "इदं" इसमें क्या झलकता है ? यदि सामने रखा हुआ सीपका टुकड़ा झलकता है ऐसा कहो तो वह भी अपने धर्मसे युक्त हुआ प्रतीत होता है कि रजतसे संबद्ध होकर प्रतीत होता है ? यदि वह अपने धर्मसे युक्त-त्रिकोण आदि रूपसे झलकेगा तो स्मृति प्रमोष कहां रहा ? अर्थात नहीं रहा, क्योंकि सीपके टुकड़े में उसीके धर्मकी प्रतीति पा रही है। इसप्रकार सीपमें सीपका धर्म झलका है तो रजतका स्मरण क्यों होगा और क्यों उसका प्रमोष होगा? ऐसा तो होता नहीं कि घटके ग्रहण करनेपर पटका स्मरण होता हो ?
प्रभाकर-सीप और चांदीमें सदृशता है इस कारण सीपके प्रतिभास होनेपर रजतका स्मरण हो जाता है।
जैन- यह कहना ठीक नहीं, क्योंकि सादृश्यको हेतु बताना बेकार है, देखो ! यदि अपने असाधारण धर्मसे सहित सीपका स्वरूप प्रतीत हो रहा है तो वहां सदृश वस्तुके स्मरणकी क्या आवश्यकता है ? हां ऐसा हो सकता है कि जब वस्तुका सामान्य रूपसे ग्रहण होता है तब कदाचित स्मरण भी हो जाय किन्तु असाधारण धर्मसे युक्त वस्तु जब ग्रहण हो जाती है तब तो सदृश वस्तुका स्मरण नहीं होता । जन्मसे जो नेत्र रोगी है उस व्यक्तिको एक ही चन्द्र में जो दो चन्द्रोंका प्रतिभास होता है उसमें सदृश वस्तुका प्रतिभास तो है नहीं फिर उस बिचारेको वहां स्मृति कैसे होगी, और उसका प्रमोष भी वहां कैसे कहलायेगा ?
भावार्थ-प्रभाकरने विपर्यय ज्ञानको स्मृति प्रमोष रूप माना है उसका कहना है कि इस ज्ञानमें दो रूप झलकते हैं एक वर्तमान रूप और दूसरा अतीत रूप, अतीत
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