Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 1
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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- प्रमेयकमलमार्तण्डे न; अस्याऽकिञ्चित्करत्वात् । यदा ह्यसाधारणधर्माध्यासितं शुक्तिकास्वरूपं प्रतिभाति तदा कथं सदृशवस्तुस्मरणम् ? अन्यया सर्वत्र स्यात् । सामान्यमात्रग्रहणे हि तत् कदाचित्स्यादपि नाऽसाधारणस्वरूपप्रतिभासे । द्विचन्द्रादिषु च जातितै मिरिकप्रतिभासविषये सदृशवस्तुप्रतिभासाभावात् कथं स्मृतेरुत्पत्तिर्यतः प्रमोषः स्यात् ? नापि तत्सन्निहितत्वेन प्रति भासः; रजतस्य तत्रासत्त्वेन तत्सन्निधानायोगात् । इन्द्रियसम्बद्धानां च तद्द शवतिनां परमाण्वादीनामपि प्रतिभासः स्यात् तदविशेषात् । नाप्यन्यावभासोऽसौ; स हि किं तत्कालभावी, उत्तरकालभावी वा स्यात् ? तत्कालभावी चेत् ; तर्हि
वस्तुका स्मरण सदृशताको लेकर होता है-सो इस मान्यतामें प्रभाचन्द्राचार्य दूषण दे रहे हैं कि विपरीत ज्ञानका कारण यदि अतीत वस्तुकी सदृशताको माना जावे तो जन्म जात नेत्र रोगसे युक्त व्यक्तिको आकाशमें एक ही चन्द्रमामें दो चन्द्रमाओंका प्रतिभास होता है वह विपर्यय ज्ञान है सो इस ज्ञानमें आपके कथनानुसार वर्तमानमें प्रत्यक्ष और अतीतका स्मरण होना चाहिये ? किन्तु वह संभव नहीं है, क्योंकि उस तिमिर रोगी को सदृश वस्तुका प्रतिभास ही नहीं है तो स्मृति कैसे पायेगी ? अर्थात् नहीं आ सकती अतः विपर्यय ज्ञानका लक्षण स्मृति प्रमोष करना व्यभिचरित है।
स्मृति प्रमोषके लक्षण में दूसरा पक्ष यह था कि "इदं" इस ज्ञानमें रजतसे संबद्ध सीपका टुकड़ा प्रतीत होता है सो यह कथन भी जमता नहीं, कारण कि वहां रजतका ही जब अभाव है तो उसकी सन्निधि कैसे हो सकती है अर्थात् नहीं हो सकती। दूसरी बात यह भी होगी कि रजत नहीं है तो भी उसकी सन्निधि मानी जाय तो इन्द्रियसे संबद्ध उस सीपके देशमें जो परमाणु आदि रहते हैं उनका भी प्रतिभास होने लग जायगा ? क्योंकि निकटता तो उनकी भी है, इसप्रकार स्मृतिके अभावको स्मृति प्रमोष कहते हैं ऐसा पांच प्रश्नोंमेंसे प्रथम प्रश्न का कथन समाप्त हुा । अब दूसरा प्रश्न या पक्ष देखिये ! अन्यका प्रवभास होना स्मृति प्रमोष है ऐसा माने तो भी ठीक नहीं है, यह अन्यावभास कब होता है तत्काल में या उत्तर कालमें ? अर्थात् रजत के स्मरण कालमें अथवा अग्रिम कालमें ? तत्कालमें होता है ऐसा कहो तो घट आदि का ज्ञान भी तत्काल भावी अर्थात् रजत स्मरणके समयमें हो सकता है अत: उसे भी स्मृति प्रमोष रूप मानना होगा। उत्तरकाल भावी अन्यावभासको भी स्मृति प्रमोष कह नहीं सकते, अतिप्रसंग आयेगा, उसी अति प्रसंगको बताते हैं कि यदि उत्तरकालमें अन्यावभास प्रगट हो गया अर्थात् सीपमें चांदीका प्रतिभास होनेके बाद सीपकी प्रतीति आगई तो वह पूर्व ज्ञान [ रजत ज्ञान ] स्मृति प्रमोष रूप नहीं कहलायेगा ? नहीं तो
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