Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 1
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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प्रमेयकमलमार्तण्डे
का समर्थन किया है। आचार्यने कहा है कि बौद्ध के समान सांख्यके अभिमतकी भी सिद्धि नहीं होती, सांख्यमतके अनुसार विपर्यय के विषयको यदि सत्य मानते हैं तो भ्रान्त ज्ञान और अभ्रान्त ज्ञान ऐसा जगत प्रसिद्ध व्यवहार समाप्त होता है । बिजली के समान जलका स्वभाव तत्काल निरन्वय नष्ट होनेका नहीं है, जिससे कि विपर्यय ज्ञानमें जल प्रतीत होकर नष्ट होता है ऐसा कहना सिद्ध होवे ?
विज्ञानाद्वैतवादीका कहना है कि विपरीत ज्ञानमें ज्ञानका ही आकार है, अविद्या के कारण वह बाह्य देश में प्रतीत होता है, अतः इस ज्ञानको आत्मख्याति रूप माना है। किन्तु यह कथन तब सिद्ध हो जब अद्वैतवादीके यहां ज्ञानका आकार सिद्ध हो । आकार वाला ज्ञान किसी भी प्रमाणसे सिद्ध नहीं है, तथा प्रत्येक ज्ञानमें अपना निजी प्राकार है तो सभी ज्ञान सत्यभूत कहलायेंगे। ज्ञानमें ज्ञानका ही आकार है तो वह बाहर क्यों प्रतीत होता है ? और यदि अविद्याके कारण होता है तो यह भी एक विपरीत ख्याति हुयी कि जो अंदर प्रतीत होना था वह बाहरमें प्रतीत होने लगता है।
वेदांती इस विपरीत ज्ञानको अनिर्वचनीयार्थ ख्याति रूप मानते हैं, उनका कहना है कि इस ज्ञानको सत कहे तो वैसा पदार्थ है नहीं और असत कहे तो झलक किसकी होगी ? अतः इसको वचनसे नहीं कह सकने रूप अनिर्वचनीयार्थ ख्याति कहते हैं । यह वेदांतीका कथन भी असत है, इस विपर्यय ज्ञानमें वर्तमानमें तो जलादि पदार्थ सत रूप ही झलकते हैं तथा इस ज्ञानसे वस्तुको ग्रहण करने आदिकी प्रवृत्ति भी होती है, अतः यह ज्ञान अनिर्वचनीयार्थ रूप भी नहीं है। विपर्यय ज्ञान तो वस्तुका विपरीत-उलटा प्रतिभास करता है, उसका विषय तो मौजूद है किन्तु वह झलकता विपरीत है, अतः स्याद्वादीकी विपरीत ख्याति ही सिद्ध होती है ।
स्मति प्रमोषवाद के खण्डनका सारांश
स्मृति प्रमोषवादी प्रभाकर ने अपना लंबा चौड़ा पक्ष रखकर यह सिद्ध करने का प्रयत्न किया है कि स्मरण का प्रमोष-अभाव होना ही विपर्यय ज्ञान है, इसमें दो झलक हैं एक तो "इदं" यह प्रत्यक्ष ज्ञान है, "रजतं" यह ज्ञान स्मरण
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