Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 1
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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अपूर्वार्थत्वविचारः
१७१ तत्रापूर्वार्थविज्ञानं निश्चितं बाधजितम् । प्रदुष्ट कारणारब्धं प्रमाणं लोकसम्मतम् ॥" [
] इति । प्रत्यभिज्ञानस्यानुभूतार्थग्राहिणोऽप्रामाण्यप्रसङ्गात्, तथा च कथमत: शब्दात्मादेनित्यत्व सिद्धिः ? न चानुभूतार्थ ग्राहित्वमस्यासिद्धम् ; स्मृतिप्रत्यक्षप्रतिपन्नेऽर्थे तत्प्रवृत्तः । न ह्यप्रत्यक्षेऽस्मर्यमाणे चार्थे प्रत्यभिज्ञानं नाम ; अतिप्रसङ्गात् । पूर्वोत्तरावस्थाव्याप्येकत्वे तस्य प्रवृत्तेरयमदोषः; इति चेत् ; किं ताभ्यामेकत्वस्य भेदः; अभेदो वा ? भेदे तत्र तस्याप्रवृत्तिः । न हि पूर्वोत्तरावस्थाभ्यां भिन्ने सर्वथैकत्वे तत्परिच्छेदिज्ञानाभ्यां जन्यमानं प्रत्यभिज्ञानं प्रवत ते अर्थान्तरैकत्ववत्, मतान्तर
तत्रापूर्वार्थविज्ञानं निश्चितं बाधवजितम् । अदुष्टकारणारब्धं प्रमाणं लोकसंमतम् ॥ १ ॥
जो ज्ञान सर्वथा अपूर्व अर्थ का निश्चायक हो, बाधा रहित हो, निर्दोष कारणों से उत्पन्न हो वही लोक संमत प्रमाण है वह गलत है।
तथा प्रमाण सर्वथा अपूर्व अर्थ को ही जानता है तो ऐसी मान्यता में प्रत्यभिज्ञान अप्रमाण होगा, क्योंकि वह भी अनुभूत विषय को ही जानता है, यदि प्रत्यभिज्ञान अप्रमाणभूत हो जाय तो उस अप्रमाणभूत ज्ञान से जाना गया आत्मादि पदार्थ नित्य सिद्ध कैसे हो सकेगा, प्रत्यभिज्ञान अनुभूत पदार्थ को जानता है यह बात प्रत्यभिज्ञान में प्रसिद्ध तो है नहीं, क्योंकि उसकी प्रवृत्ति प्रत्यक्ष और स्मृति के द्वारा जाने हुए विषय में ही होती है, विस्मत हुए तथा अप्रत्यक्ष विषय में प्रत्यभिज्ञान की उत्पत्ति नहीं होती, यदि वह बिना देखी और बिना स्मरण हुई वस्तु में प्रवृत्त होता हो तो फिर जो अतिपरोक्ष मेरु आदि पदार्थ हैं उनमें उसकी उत्पत्ति होने का प्रसङ्ग प्राप्त होगा, तात्पर्य इसका यही है कि वर्तमान काल का प्रत्यक्ष और पूर्वदृष्ट वस्तु का स्मरण-इन दोनों का जोड़रूप जो ज्ञान होता है वही प्रत्यभिज्ञान है, प्रत्यभिज्ञान और प्रकार से नहीं होता।
यदि कहा जावे कि पूर्वोत्तर अवस्था में व्याप्त जो एकत्व है उसमें प्रत्यभिज्ञान प्रवृत्त होता है, इसलिये वह एकत्व अपूर्व होनेसे प्रत्यभिज्ञान अपूर्वार्थ का ही ग्राहक सिद्ध होता है, तो इस पर हम आप से यह पूछते हैं कि उन पूर्वोत्तर अवस्थाओं में वह एकत्व भिन्न है कि अभिन्न है ? यदि भिन्न है तो उसमें प्रत्यभिज्ञान प्रवृत्त नहीं होगा, क्योंकि पूर्वोत्तर अवस्था से सर्वथा भिन्न ऐसे एकत्व में उन पूर्वोत्तर
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