Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 1
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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प्रमेयकमलमार्तण्डे
इत्यादावपि ज्ञानभेदः कल्प्यतामविशेषात् । अथात्र सतो घटस्य ग्रहणान्नासौ कल्प्यते; तर्हि अन्यत्राप्यसतो ग्रहणात्तत्कल्पना माभूत् । यथैव हि गुणान्वितैश्चक्षुरादिभि: सति वस्तुन्येकं ज्ञानं जन्यते, तथा दोषान्वितैः सादृश्यवशादसत्येकं ज्ञानं जन्यते । गुणदोषाणां च सद्भावं ज्ञानजनकत्वं च स्वत:प्रामाण्यप्रतिषेधप्रस्तावे प्रतिपादयिष्यामः । न च प्रभाकरमते विवेकाख्यातिः सम्भवति, तत्र हि 'इदम्' इति प्रत्यक्षं 'रजतम्' इति च स्मरणमिति संवित्तिद्वयं प्रसिद्धम्, तच्चाऽऽत्मप्राकट्य नैवोत्पद्यते । प्रात्मप्राकट्य चान्योन्यभ दग्रहणेनैव संवेद्यते घटपटादिसंवित्तिवत् । किञ्च, विवेकख्याते. प्रागभावो विवेकाख्यातिः । न चाभावः प्रभाकरमतेऽस्ति ।
उसीप्रकार काच कामलादि दोष युक्त नेत्र आदि इन्द्रियों द्वारा वस्तुओंमें समानता होने के कारण अविद्यमान वस्तुमें भी एक ही ज्ञान उत्पन्न होता है, ऐसा स्वीकार करना चाहिए।
गुण और दोष दोनोंका ही सद्भाव है, दोनों ही ज्ञानको उत्पन्न करने में [ या नहीं करने में ] समर्थ हैं, इस बातको हम स्वतः प्रामाण्यवाद-का खण्डन करते समय कहनेवाले हैं। आप प्रभाकरके मतमें विवेक अख्याति संभव नहीं है आप लोग "इदं" इस झलक को प्रत्यक्ष और "रजतं" इस झलकको स्मृति नाम देते हैं तथा यह भी कहते हैं कि वे दोनों ही अपने स्वरूपकी प्रगटतासे ही उत्पन्न होते हैं, यह स्वरूप प्रगटता तो आपस में एक दूसरेके भेदोंके ग्रहणके बाद ही अनुभवमें आती है, जैसे घट पट आदिके ज्ञानोंमें अपना अपना भिन्न भिन्न रूप एक दूसरेके भेदकी विशेषताको जाननेके बाद ही अनुभव में आता है। तथा विवेकके ख्यातिका प्रागभाव [ अभाव ] होना विवेक अख्याति कहलाती है किन्तु प्रभाकर मतमें अभावको नहीं माननेसे यह अख्याति सिद्ध नहीं होती। प्रभाकर यह बतानेका कष्ट करे कि स्मृतिप्रमोष कहते किसे हैं ? स्मृतिके अभावको, या अन्यमें अन्यके प्रतिभासको, या विपरीताकार रूपसे जाननेको, या अतीत कालका वर्तमान रूपसे ग्रहण होनेको, या प्रत्यक्षके साथ दूध पानीके समान स्मृतिका अभेद रूपसे उत्पाद होनेको ? इन पांच विकल्पोंको छोड़कर अन्य कोई विकल्पसे तो स्मृति प्रमोषका लक्षण हो नहीं सकता।।
- प्रथम विकल्प-स्मृतिके अभावको स्मृति प्रमोष कहते हैं तोवह है नहीं,क्योंकि यदिस्मृतिका अभाव होता तो पहले देखे हुए रजतकी प्रतीति सीपमें कैसे होती? अर्थात् नहीं होती। तथा स्मतिके अभाव को यदि स्मृति प्रमोष कहा जायगा तो मूच्छित आदि अवस्था में जो भी ज्ञान होते हैं उनको भी स्मृति प्रमोषताका प्रसंग प्राप्त होगा, क्योंकि वहां भी स्मृतिका अभाव है ? यदि कहा जाय कि स्वप्न मूर्छा आदि अवस्थामें तो "इदं" यह
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