Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 1
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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प्रमेयकमलमार्तण्डे अत्र प्रतिविधीयते-न दोषैः शक्तेः प्रतिबन्धः प्रध्वंसो वा विधीयते, किन्तु दोषसमवधाने चक्षुरादिभिरिदं विज्ञानं विधीयते । दोषाणां चेदमेव सामर्थ्य यत्तत्सन्निधानेऽविद्यमानेप्यर्थे ज्ञानमुत्पादयन्ति चक्षुरादीनि । न चैवमसत्ख्यातिः स्यात् ; सादृश्यस्यापि तद्ध तुत्वात् । असत्स्यातिस्तु न तद्धतुका, खपुष्पज्ञानवत् । रजताकारश्च प्रतिभासमानो न ज्ञानस्य ; संस्कारस्यापि तद्ध तुत्वात् । दोषाद्धि संस्कारसहायादनुभूतस्यैव रजतस्यायमाकारः पुरोवर्तिन्यर्थे प्रतिभासते । न चैवं 'तद्रजतम्' इति
हैं, किन्तु हम प्रभाकर मतवाले तो इस ज्ञानको स्मृति प्रमोष रूप मानते हैं। इस ज्ञानका कारण दो ज्ञानोंका एकत्रित होना है, अर्थात् “इदं" वर्तमान ज्ञान है, और "रजतं" यह भूतकालीन ज्ञान है, किन्तु उसमें "स्मरण करता हूं" ऐसा प्रतिभास नहीं होता बस ! इसीलिये इसका नाम स्मृति प्रमोष रखा गया है।
जैन-यहां पर प्रभाकरके उपर्युक्त कथनका खण्डन किया जाता है शुरूमें उन्होंने पूछा था कि दोषोंके द्वारा इन्द्रिय शक्तिका प्रतिबन्ध होता है या नाश होता है। इत्यादि सो इसका जवाब हम देते हैं कि काच कामलादि दोषों द्वारा नेत्रादिकी शक्तिका प्रतिबंध नहीं होता है और न उसका नाश होता है, किन्तु दोषके कारण चक्ष आदि इन्द्रियोंके द्वारा ऐसा ज्ञान होने लग जाता है । दोषोंका यही सामर्थ्य है कि उनके निमित्तसे पदार्थके न होनेपर भी उस विषयका वे चक्षुरादि इन्द्रियां ज्ञान पैदा करा देती हैं। ऐसी मान्यता से असतख्यातिका प्रसंग भी नहीं आता है, अर्थात् अविद्यमान वस्तुको जाने तो असतवाद आवे सो ऐसी बात नहीं है, क्योंकि इस ज्ञानमें पहले देखे गये रजतादिकी सदृशता भी कारण है. असत ख्यातिमें ऐसा सादृश्य हेतु नहीं है वह तो सर्वथा अाकाश पुष्पके ज्ञान सदृश है । तथा सीपमें रजताकार जो प्रतिभास हो रहा है वह ज्ञानका आकार नहीं है किन्तु संस्कारके निमित्तसे ऐसा प्रतिभास होता है, मतलब काच कामला प्रादि दोष और बार बार सफेद चीजका देखना रूप संस्कार ये सब ऐसे प्रतिभासके हेतु हैं, पूर्व में जाना गया रजतका आकार सामने में स्थित सीपमें झलकता है, ऐसा माननेपर “वह रजत है" इस तरह झलक आनेका प्रसंग जो आपने कहा था वह भी नहीं आयेगा, क्योंकि दोषके कारण सामने स्थित सीपमें रजतका आकार झलकता है अन्यथा आपको भी "वह रजत है" ऐसी झलक होने का प्रसंग क्यों नहीं प्राप्त होगा ? इसलिये जैसे तुम्हारी मान्यताके अनुसार यहां स्मृतिका प्रमोष है वैसे ही दोषोंके कारण समानता का अर्थात् सफेदीका अधिकरण होनेसे सामने स्थित सीपमें रजताकारका अवभास होता है ऐसा क्यों नहीं मानते ? इस कथनसे आपके
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