Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 1
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
View full book text
________________
सन्निकर्षवाद:
योगजधर्मानुग्रहात्तस्य तैः साक्षात्सम्बन्धश्चेत्; कोऽयमिन्द्रियस्य योगजधर्मानुग्रहो नाम । स्वविषये प्रवर्त्तमानस्यातिशयाधानम्, सहकारित्वमात्रं वा ? प्रथमपक्षोऽयुक्तः; परमाण्वादौ स्वयमिन्द्रियस्य प्रवर्तनाभावाद्, भावे तदनुग्रहवैयर्थ्यम् । तत एवास्य तत्र प्रवृत्तौ परस्पराश्रय - सिद्ध े हि योगजधर्मानुग्रहे तत्र तस्य प्रवृत्तिः, तस्यां च योगजधर्मानुग्रह इति । द्वितीयपक्षोप्यसम्भाव्यः ;
प्रमाता होना चाहिये, क्योंकि वह पहिला प्रमाता प्रमेय का आधार होने से प्रमेय हो जावेगा, इसलिये जैसे प्रमाण प्रमेय से भिन्न है वैसे प्रमाता भी मानना पड़ेगा, दूसरा आया हुआ प्रमाता भी जब प्रमेय हो जावेगा तब तीसरा और एक प्रमाता चाहिए, फिर एक प्रमेयरूप आत्मा में अनंत प्रमाता की माला जैसी बन जावेगी, इन दोषों को हटाने के लिये यदि कहा जाये कि एक ही आत्मा में प्रमातृपना और प्रमेयपना होने में कोई विरोध नहीं है, तो फिर उसी प्रमाता में प्रमाणपना भी मान लो फिर “प्रमाता और प्रमेय से भिन्न प्रमाण होता है" यह सूत्र सदोष हो जाने से खंडित हो जाता है ।
४७
वैशेषिक को हम आगे अच्छी तरह से सिद्ध करके बनाने वाले हैं कि चक्षु प्राप्यकारी है, इसलिये घट का प्रांख के साथ संयोग होना, रूपादिक के साथ उसका संयुक्तसमवायादि होना इत्यादिरूप से सन्निकर्ष का लक्षण जो किया है वह अव्याप्ति दोष युक्त हो जाता है और सन्निकर्ष को प्रमाण मानने पर सर्वज्ञ का अभाव भी होता है, क्योंकि इन्द्रियों का परमाणु आदि बहुत से पदार्थों के साथ साक्षात् संबंध होता ही नहीं । इन्द्रियां सूक्ष्म परमाणु आदि पदार्थों के साथ साक्षात् संबंध नहीं कर सकतीं, क्योंकि वे हम लोगों की इन्द्रियों के समान इन्द्रियां हैं । इस प्रकार के इस अनुमान से इन्द्रियों का परमाणु आदि के साथ संबंध होना प्रसिद्ध सिद्ध होता है ।
शंका- यदि वैशेषिक ऐसा कहें कि इन्द्रियों का योगजधर्म के बड़े भारी अनुग्रह से उन परमाणु आदि के साथ साक्षात् संबंध हो जायगा अर्थात् - इन्द्रियों में योगज धर्मका बड़ाभारी अनुग्रह होता है अतः सर्वज्ञ की इन्द्रियां सूक्ष्मादि पदार्थों का साक्षात्कार कर लेती हैं ।
भावार्थ - वैशेषिक के मत में - सिद्धान्त में योगजधर्म के अनुग्रह का कथन इस प्रकार है कि हम जैसे सामान्य व्यक्तियों से अन्य विशिष्ट जो योगीजन हैं वे विशेष योग ( ध्यान या समाधि ) से सहित होते हैं, उन योगियों के जो मन होता है वह योगज धर्म से प्रभावित रहता है सो उस मन के द्वारा अपना खुद का तथा
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org