Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 1
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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प्रमेयकमलमार्तण्डे भावानभ्युपगमात् । अन्योत्पादककारणस्वभावस्योपगमे क्षणक्षयादौ तत्प्रसङ्गः, अन्यथा दर्शनभेदः स्याद्विरुद्धधर्माध्यासात् । योगिन एव च तथाभूतं तत्सम्भाव्येत, ततोऽस्यापि विकल्पोत्पत्तिप्रसङ्गात् "विधूतकल्पनाजाल" [ ] इत्यादिविरोधः । अथित्वं चाभिलषितत्वम्, जिज्ञासितत्वं वा ? प्रथमपक्षोऽयुक्तः; क्वचिदनभिलषितेपि वस्तुनि तस्याः प्रबोधदर्शनात् । चक्रकप्रसङ्गश्च-अभिलषितत्वस्य वस्तुनिश्चयपूर्वकत्वात् । द्वितीयपक्षेतु-क्षणक्षयादौ तद्वासनाप्रबोधप्रसङ्गो नीलादाविवात्रापि जिज्ञासितत्वाविशेषात् ।
न चैवं सविकला(ल्प)कप्रत्यक्षवादिनामपि प्रतिवायु पन्यस्तसकलवर्णपदादीनां स्वोच्छ्वासादिसंख्यायाश्चाविशेषेण स्मृतिः प्रसज्यते; सर्वथैकस्वभावस्यान्तर्बहिर्वा वस्तुनोऽनभ्युपगमात् । तन्मते
नाश होने को पाटव कहते हैं सो यह भी बनता नहीं, क्योंकि तुच्छ स्वभाव वाला अभाव तुमने माना नहीं है, तथा निर्विकल्प बुद्धि में इस तरह अन्य को उत्पन्न करने रूप स्वभाव मानोगे तो क्षण-क्षयादि में भी विकल्प पैदा करने रूप स्वभाव मानना होगा। नहीं तो तुम्हारे निर्विकल्प दर्शन में भेद मानने होंगे। क्योंकि उसमें विरुद्ध दो धर्म अर्थात् नीलादि में विकल्प उत्पन्न करना और क्षण क्षयादि में नहीं करना ऐसे दो विरुद्ध स्वभाव हैं, वे एकमें ही कैसे रहेंगे ? और एक दोष यह भी आवेगा कि योगीजन भी ऐसे पाटव को धारण करते ही हैं अतः उनसे भी विकल्प पैदा होने लग जायेंगे। फिर तुम्हारा सिद्धान्त गलत सिद्ध होगा कि “योगियों का ज्ञान विकल्पों की कल्पना जाल से रहित है" । अथित्व-पना माने (चौथा पक्ष) तो वह क्या है ? अभिलाषपना या जानने की इच्छा ? अभिलाष रूप अथित्व तो बनता नहीं, क्योंकि अभिलाषा रहित वस्तु में भी विकल्प वासना का प्रबोध देखा जाता है, तथा इस मान्यता में चककनामा दोष भी आता है, क्योंकि अभिलाषपना भी वस्तु के निश्चय पूर्वक ही होगा । चक्रक दोष इस प्रकार आयेगा कि अभिलाष से विकल्प वासना प्रबोध की सिद्धि होगी पुन: विकल्प वासना प्रबोध से विकल्प की सिद्धि होगी। फिर विकल्प से अभिलाषित रूप अथित्व सिद्ध होगा। इस प्रकार तीन के चक्कर में चक्कर लगाते जाना चकक दोष है । जानने की इच्छा को अथित्व कहते हैं तो उसमें वही आपत्ति है कि नीलादि की तरह क्षण-क्षयादि में विकल्प वासना प्रबोध कराने का प्रसंग पाता है क्योंकि जानने की इच्छा तो नीलादि की तरह क्षण-क्षयादि में भी है ।
बौद्ध- इस प्रकार अनिश्चय रूप निर्विकल्प से विकल्प उत्पन्न होना नहीं मानो तो सविकल्पक ज्ञानवादी जैन के ऊपर भी सौगत प्रतिवादी के द्वारा दिया गया
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