Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 1
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
View full book text
________________
बौद्धाभिमतनिर्विकल्पकप्रत्यक्षस्य खंडनम्
गृहीतार्थग्राहित्वात् । कथं वा क्षणक्षयानुमानस्य प्रामाण्यम्-शब्दरूपावभास्यध्यक्षावगतक्षणक्षयविषयत्वात् ? नच अध्यक्षेण धार्मिस्वरूपग्राहिणा शब्दग्रहणेपि न क्षणक्षयग्रहणम् ; विरुद्धधर्माध्यासतस्तद्भदप्रसक्त: । नाप्यसतिप्रवर्तनात् ; अतीतानागतयोविकल्पकाले असत्त्वेपि स्वकाले सत्त्वात् । तथाप्यस्याप्रामाण्ये-प्रत्यक्षस्याप्यप्रामाण्यानुषङ्गः तद्विषयस्यापि तत्कालेऽसत्त्वाविशेषात् । हिताऽहितप्राप्तिपरिहारासमर्थत्वादित्यसम्भाव्यम् ; विकल्पादेवेष्टार्थप्रतिपत्तिप्रवृत्तिप्राप्तिदर्शनात् अनिष्टार्थाच्च
दूसरा पक्ष:-विकल्प गृहीत ग्राही है अत: अप्रमाण है । यह पक्ष भी ठीक नहीं है, ऐसा मानें तो अनुमान भी अप्रमाण होगा तथा व्याप्ति ज्ञान और योगि प्रत्यक्ष आदि भी गृहीत ग्राही होने से अप्रमाण होवेंगे। क्षण क्षयादि को विषय करने वाला अनुमान भी असत् होगा, क्योंकि वह शब्द ग्राहक श्रावण प्रत्यक्ष के द्वारा जाने हुए विषय में ही प्रवृत्ति करता है ।
भावार्थ- निर्विकल्प के प्रवृत्त होने पर उसी में विकल्प प्रवृत्ति करता है। अत: गृहीत ग्राही ग्रहण किए हुए को ही ग्रहण करने वाला है इसलिए विकल्प प्रमाण है-ऐसा बौद्ध कहेंगे तो उन बौद्ध को अनुमान को अप्रमाण मानना पड़ेगा क्योंकि अनुमान भी प्रत्यक्ष के विषय में ही प्रवृत्ति करता है अर्थात् यह घट है ऐसा कर्ण प्रत्यक्ष के द्वारा सुना, अब वह शब्द तो ग्रहण हो चुका फिर उसीमें अनुमान आया कि यह शब्द क्षणिक है क्योंकि नष्ट होता है अथवा सदुरूप है। इस प्रकार का अनुमान गृहीत- ग्राही होने से अप्रमाण बन जायेगा।
चौद्ध-धर्मी के स्वरूप को ग्रहण करने वाला जो प्रत्यक्ष है उस प्रत्यक्ष के (श्रावण ) द्वारा शब्द भले ही ग्रहण हुआ है किन्तु उसका धर्म जो क्षण क्षय है वह तो ग्रहण हुआ ही नहीं।
जैन- ऐसा मानें तो शब्द धर्मी में दो विरुद्ध धर्म होने से उसके भेद मानने पड़ेंगे अर्थात् शब्द में शब्दत्व तो ग्राह्य और क्षणिकत्व अग्राह्य ऐसे विरुद्ध दो धर्म हो जायेंगे ( जो कि आपको इष्ट नहीं होगा क्योंकि हम जैन को छोड़कर अन्य किसी भी मतवालों ने एक ही वस्तु में विरुद्ध धर्मों का सद्भाव नहीं माना है)।
तीसरा पक्ष-पदार्थ के न होने पर भी विकल्प प्रवृत्ति करता है अतः विकल्प अप्रमाण है ऐसा कहें तो भी ठीक नहीं, यद्यपि विकल्प का विषय वर्तमान में नहीं
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org