Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 1
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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शब्दाद्वैतविचारः
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र्थान्तरस्योत्पत्तौ-कथं 'शब्दब्रह्मविवर्तमर्थरूपेण इति घटते । न ह्यन्तिरस्योत्पादे अन्यस्य तत्स्वभावमनाश्रयत: तादू प्येण विवर्तो युक्तः । तदनन्तरस्य तूत्पत्तौ-तस्यानादिनिधनत्वविरोधः।।
ननु परमार्थतोऽनादिनिधनेऽभिन्नस्वभावेपि शब्दब्रह्मणि अविद्यातिमिरोपहतो जनः प्रादुर्भावविनाशवत् कार्यभेदेन विचित्रमिव मन्यते । तदुक्तम्
कसौटी पर खरा नहीं उतरता है । क्योंकि शब्दब्रह्म नित्य है, जो सर्वथा नित्य होता है उसमें किसी भी प्रकार का विकार नहीं हो सकता।
___ तथा इस प्रकार की मान्यता में ऐसी भी जिज्ञासा हो सकती है कि नित्यवस्तु के द्वारा जो कार्य उत्पन्न होता है वह क्रम २ से उत्पन्न नहीं होगा, प्रत्युत उसके द्वारा तो समस्त ही कार्य एक साथ ही उत्पन्न हो जावेंगे, क्योंकि समर्थ कारण के न होने से ही कार्यों की उत्पत्ति में विलंब हुआ करता है, उसके सद्भाव में नहीं, जब समर्थ कारण स्वरूप शब्दब्रह्म मौजूद है तो फिर कार्यों को अपनी उत्पत्ति में अन्य की अपेक्षा क्यों करनी पड़ेगी कि जिससे वे सब के सब एक साथ उत्पन्न न होंगे, अर्थात् अपना समर्थ-अविकल कारण मिलने पर एक साथ समस्त कार्य उत्पन्न हो ही जाते हैं।
किश्च-जगत् में जो पृथक् २ घट पट आदि कार्योंका समूह दिखाई देता है वह शब्दब्रह्म से भिन्न स्वरूपवाला होकर उत्पन्न होता है ? या अभिन्न स्वरूपवाला होकर उत्पन्न होता है ? यदि घट पटादि पदार्थ उससे भिन्न रूप में होकर उत्पन्न होते हैं तो फिर जो ऐसा कहा गया है कि- "शब्दब्रह्मविवर्तमर्थरूपेण" शब्दब्रह्म की ही यह अर्थरूप पर्याय है-यह कैसे घटित होगा, अर्थात् नहीं होगा । शब्दब्रह्म से जब घट पटादि पदार्थ उत्पन्न होते हैं और वे जब उसके स्वभाव का प्राश्रय नहीं लेते हैं तो उनकी उत्पत्ति शब्दब्रह्म से हुई है, अतः वे शब्दब्रह्म की पर्याय हैं यह कैसे युक्तियुक्त हो सकता है, अर्थात् नहीं हो सकता । यदि ऐसा कहो कि घट पटादि जो पदार्थ ब्रह्म से उत्पन्न होते हैं वे उससे अभिन्न स्वरूप वाले होकर ही उससे उत्पन्न होते हैं, तो इस प्रकार के कथन में सबसे बड़ी आपत्ति का प्रापको सामना करना पड़ेगा, क्योंकि शब्द ब्रह्म में अनादि निधनता समाप्त हो जावेगी, और वह इस प्रकार से –कि जो पदार्थ उससे उत्पन्न हुए हैं वे तो उत्पाद विनाश स्वभाव वाले होते हैं उनसे शब्दब्रह्म अभिन्न है, अत: उत्पाद विनाश धर्मवाले पदार्थों से उसकी एकतानता हो जाने के कारण उसकी अनादि निधनता सुरक्षित नहीं रह सकती, वह समाप्त हो जाती है।
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