Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 1
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
View full book text
________________
... प्रमेयकमलमार्तण्ड :
न्तरेण निर्वक्तु न शक्यत इत्य निर्वचनीयार्थख्याति: सिद्धा; इत्यपि मनोरथमात्रम् ; अव तसिद्धौ
ह्य तसिद्धयेत्, 'सच्चाद्वैतं निराकरिष्यामः । यच्चोक्तम्-न ज्ञानस्य विषय उपदेशमम्य इत्यादि ; तद्भवतामेव प्राप्तम् , तथा हि-जलादिभ्रान्तौ नियतदेशकालस्वभावः सदात्मकत्वेनैव जलाद्यर्थः प्रतिभाति तद्ग्रहणेप्सोस्तत्रैव प्रवृत्तिदर्शनात् तत्कथमसावनिर्वचनीय: स्यात् ? न ह्य वंभूले प्रतिभासप्रवृत्ती अनिर्वचनीयेऽर्थे सम्भवतः । अथ विचार्य माण एवासौ सदसत्त्वादिभिरनिर्वचनीयः सम्पद्यते न तु भ्रान्तिकाले तथा प्रतिभातीति; नन्वेवमन्यथाप्रतिभासाद्विपरीतख्यातिरेव स्यात् । - - जैन - यह वर्णन भी मनोस्थ मात्र है, जब अद्वैतपना सिद्ध हो तब यह कथन भी 'ठीकै हो किन्तु हम तो उस अद्वैतको आगे निराकरण करनेवाले हैं। आपने कहा कि ज्ञानको विषय उपदेशगम्य नहीं इत्यादि, सो यह दोष तो आपको ही लगेगा, देखिये! जलके भ्रान्त ज्ञानमें जलादि पदार्थ झलकता है वह नियत देश, काल, स्वभाववाला है, अर्थात् सामने एक निश्चित स्थान पर और वर्तमान समयवाला है तथा सत रूपसे 'प्रतीतिमें आता है, उसको ग्रहण करनेके इच्छुक व्यक्तिकी वहाँ पर प्रवृत्ति भी देखी 'जाती है, ऐसी हालतमें उसे अनिर्वचनीय कैसे माने ? अनिर्वचनीयतामें इसतरहका प्रतिभास तथा प्रवृत्ति नहीं होती। तुम कहो कि इसकी सत-असत रूपसे विचार करने पर तत्तदुरूपसे प्रतीति नहीं होती है, इसलिये हम लोग इसे अनिर्वचनीय कहते हैं, न कि भ्रान्ति के समय अनिर्वचनीय कहते हैं, क्योंकि भ्रांति कालमें वह वैसा झलकता है ? सो ऐसा मानते हो तब तो उस ज्ञानको अन्यथा प्रतिभासरूप होनेसे विपरीतख्याति रूप ही क्यों नहीं कहते हो ?, ..
. शंका--"यह विपरीत है" ऐसा प्रतिभास न होनेके कारण इसे विपरीतार्थ ख्याति रूप भी नहीं मान सकते ? ... : .
___समाधान हम जैन भी ऐसा नहीं कहते हैं कि “यह विपरीत पदार्थ है" इस तरहके कथनको विपरीतार्थ कहते हैं । तुम पूछो कि: विपरीतार्थ ख्याति किसे कहना ? सो बताते हैं-पुरुषसे विपरीत जो पदार्थ स्थाणु है उसमें “यह पुरुष है" ऐसी ख्याति ही विपरीतार्थ ख्याति कहलाती है। .. शंका-पुरुषको झलकानेवाला जो ज्ञान है उसमें स्थाणु का प्रतिभास तो है नहीं अत: उसको पुरुषको झलकाने वाले ज्ञानका विषय मानना अयुक्त है, अन्यथा सब -जगह अव्यवस्था हो जायगी अर्थात् घट-पट आदि पदार्थों को प्रतिभासित करनेवाले ज्ञानोंमें नहीं प्रतिभासित हुए पुरुषका विपर्यय मानना पड़ेगा ?
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org