Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 1
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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संशयस्वरूपसिद्धिः
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इत्यप्यसमीचीनम् ; यतः संशयः सर्वप्राणिनां चलितप्रतिपत्त्यात्मकत्वेन स्वात्मसवेद्य । स मिविषयो वास्तु धर्मविषयो वा तात्त्विकातात्विकार्थविषयो वा किमेििवकल्पैरस्य वालाग्रमपि खण्डयितु शक्यते ? प्रत्यक्षसिद्ध स्याप्यर्थस्वरूपस्यापह्नवे सुखदुःखादेरप्यपह्नवः स्यात् । कथं च 'धमिविषयो धर्मविषयो वा' इत्यादि प्रश्नहेतुकसंशयादि(धि) रूढएवायं संशयं निराकुर्यात् न चेदस्वस्थः ? किंच, उत्पादककारणाभावात्संशयस्य निरासः, असाधारणस्वरूपाभावात्, विषयाभावाद्वा ? तत्राद्य: पक्षोऽयुक्तः ; तदुत्पादककारणस्य सद्भावात्, स ह्याहितसंस्कारस्य प्रतिपत्तुः समानाऽसमानधर्मोपलम्भानुपलम्भतो मिथ्यात्वकर्मोदये सत्युत्पद्यते । असाधारणस्वरूपाभावोप्यसिद्धः; चलितप्रतिपत्तिलक्षणस्यासाधारणस्वरूपस्य तत्र सत्त्वात् । विषयाभावस्तु दूरोत्सारित एव; स्थाणुत्वविशिष्टतया पुरुषत्वविशिष्ट तया वाऽनवधारितस्य उर्ध्वतासामान्यस्य तद्विषयस्य सद्भावात् । चाहे धर्म हो चाहे धर्मी, सत हो चाहे असत, इतने विकल्पोंसे संशयका बालाग्र भी खण्डित नहीं कर सकते, क्योंकि इस प्रकार आप प्रत्यक्षसिद्ध वस्तुका भी अभाव करने लगोगे तो सुख दुःखादिका भी अभाव करना चाहिये ? आश्चर्य की बात है कि आप प्रभाकर स्वयं ही इस संशयका विषय धर्म है कि धर्मी, सत है कि असत ? इस प्रकार के संशयरूपी झूले में झूल रहे हो और फिर भी उसीका निराकरण करते हो ? सो अस्वस्थ हो क्या ? किं च पाप उत्पादक कारणका अभाव होनेसे संशयको नहीं मानते हैं या उसमें असाधारण रूपका अभाव होनेसे, अथवा विषयका अभाव होनेसे संशयको नहीं मानते हैं ? प्रथम पक्ष प्रयुक्त है, देखो ! संशयका उत्पादक कारण मौजूद है। किस कारणसे संशय पैदा होता है सो बताते हैं-प्राप्त किया है स्थाणुत्व और पुरुषत्वके संस्कारको जिसने ऐसा व्यक्ति जब असमान विशेष धर्म जो मस्तक, हस्तादिक है तथा वक्र, कोट रत्वादि है उसका प्रत्यक्ष तो नहीं कर रहा और समान धर्म जो ऊर्ध्वता (ऊंचाई ) है उसको देख रहा है तब उस व्यक्तिको अंतरंगमें मिथ्यात्वके उदय होनेपर संशय ज्ञान पैदा होता है । संशयमें असाधारण स्वरूपका अभाव भी नहीं है, देखो ! चलित प्रतिभास होना यही संशयका असाधारण स्वरूप है। विषयका अभाव भी दूरसे ही समाप्त होता है स्थाणुत्व विशिष्टसे अथवा पुरुष विशिष्टसे जिसका अवधारण नहीं हुआ है ऐसा ऊर्ध्वता सामान्य ही संशयका विषय माना गया है, और वह मौजद ही है । संशयकी सिद्धि से विपर्ययकी भी सिद्धि होती है, क्योंकि उसको उत्पादक सामग्री भी मौजूद है ।
* संशयस्वरूपसिद्धि प्रकरण समाप्त *
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