Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 1
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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प्रमेयकमलमार्त्तण्डे
जितने भी प्रमाणभूत ज्ञान हैं वे सब शब्दात्मक हैं- शब्दरूप उपादान से निर्मित हैं । शब्द वाक् के चार भेद हैं- वैखरी वाक्, मध्यमा वाक्, पश्यन्ती वाक्, और सूक्ष्मा वाक्, इनके लक्षण इस प्रकार से हैं
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वैखरी शब्दनिष्पत्तिः मध्यमा श्रुतिगोचरा । द्योतितार्था च पश्यन्ती सूक्ष्मा वागनपायिनी ॥
१ ॥
- कुमार सं. टीका २/१७
वक्ता के मुख से तालु श्रादि स्थानों पर जो शब्द बनते हैं - निष्पन्न होते हैंककारादि वर्णों की निष्पत्ति होती है, उसे वैखरीवाक् कहा गया है । कर्णपुट में प्रविष्ट होने के बाद जिसमें वर्णक्रम समाप्त हो गया है वह मध्यमा वाक् है, तथा अन्तरंग में संकल्प विकल्परूप या अन्तः जल्पस्वरूप वाग् भी मध्यमा वाक् है, केवल बुद्धि या ज्ञानरूप पश्यन्तीवाक् है, सूक्ष्मावाक् तो सर्वत्र है वह अत्यन्त दुर्लक्ष्य है, उसी सूक्ष्मवाक् से विश्व व्याप्त हो रहा है । इस प्रकार समस्त विश्व, मन वचन ज्ञान आदि सब शब्दमय हैं । शब्द के बिना कोई भी ज्ञान नहीं हो सकता, शब्द सर्वथा नित्य है, हमें जो वह कार्यकारण रूप या उत्पत्ति विनाश आदि रूप प्रतीत होता है वह केवल विद्या के कारण होता है, अविद्या के अभाव में जगत् शब्दमय तथा नित्य ही प्रतिभासित होता है ।
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