Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 1
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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प्रमेयकमलमार्तण्डे
अनादिनिधनं शब्दब्रह्मतत्त्वं यदक्षरम् । विवर्ततेऽर्थभावेन प्रक्रिया जगतो यतः ॥ ३ ॥
[वाक्यप० १/१] अनादिनिधनं हि शब्दब्रह्म उत्पादविनाशाभावात्, अक्षरं च अकाराद्यक्षरस्य निमित्तत्वात्, अनेन वाचकरूपता 'अर्थभावेन' इत्यनेन तु वाच्यरूपतास्य सूचिता । प्रक्रियेति भेदाः । शब्दब्रह्मति नामसङ्कीर्तनमिति;
तेप्यतत्त्वज्ञाः; शब्दानुविद्धत्वस्य ज्ञानेष्वप्रतिभासनात् । तद्धि प्रत्यक्षेण प्रतीयते, अनुमानेन वा ? प्रत्यक्षेण चेत्किमै न्द्रियेण, स्वसंवेदनेन वा ? न तावदैन्द्रियेण; इन्द्रियाणां रूपादिनियतत्वेन ज्ञानाविषयत्वात् । नापि स्वसंवेदनेन; अस्य शब्दागोचरत्वात् । अथार्थस्य तदनुविद्धत्वात् तदनुभवे ज्ञाने तदप्यनुभूयते इत्युच्यते; ननु किमिदं शब्दानुविद्धत्वं नाम-अर्थस्याभिन्नदेशे प्रतिभासः, तादात्म्यं
शब्दब्रह्म रूप तत्त्व तो अनादिनिधन-आदिअन्तरहित है क्योंकि वह अविनश्वर है, वही शब्दब्रह्म घटपटादिरूप से परिणमता है, अत: जगत्में जितने पदार्थ हैं वे सब उसी शब्दब्रह्म के भेद प्रभेद हैं ॥ ३ ।। यह शब्दब्रह्म अनादिनिधन इसलिये है कि उसमें उत्पाद विनाश नहीं होता, अकारादि अक्षरोंका वह निमित्त है, अतः अक्षर रूप भी उसे कहा गया है, इससे यह प्रकट किया गया है कि वह वाचक रूप है तथा वही अर्थरूप से परिणमन करता है, अतः वही वाच्यरूप है, यही जगत् की प्रक्रिया है अर्थात् प्रभेद भेद रूप जो ये जगत् है वह शब्दब्रह्ममय है।
जैन-इस प्रकार से यह शब्दब्रह्म का प्रतिपादन तात्त्विक विवेक वालों के द्वारा नहीं हुआ है; किन्तु अतत्त्वज्ञों के द्वारा ही हुआ जानना चाहिये, क्योंकि ज्ञान शब्दानुविद्ध हैं यह बात बुद्धि में उतरती नहीं है, ज्ञानों में शब्दानुविद्धता है" यह बात किस प्रमाण से आप प्रमाणित करते हैं ? क्या प्रत्यक्ष से या अनुमान से ? यदि कहा जाय कि 'ज्ञानों में शब्दानुविद्धता प्रत्यक्ष से हम साबित करते हैं-तो पुनः प्रश्न होता है कि इन्द्रियजन्य प्रत्यक्ष से या स्वसंवेदन प्रत्यक्ष से ? इन्द्रियजन्य प्रत्यक्ष तो ज्ञानों में शब्दानुविद्धता को जान नहीं सकता, क्योंकि उसकी प्रवृत्ति रूपादि नियत विषयों में होती है, ज्ञान में नहीं, रहा स्वसंवेदनप्रत्यक्ष-सो यह शब्द के अगोचर है, अर्थात् अचेतनशब्द में स्वसंवेदनता का अभाव है।
शब्दाद्वैतवादी-ठीक है प्रत्यक्ष "ज्ञान शब्द से अनुविद्ध है" इस बात को साक्षात् रूप से नहीं जानता है तो मत जानो-परन्तु पदार्थ में शब्दानुविद्धता है सो जब
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