Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 1
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
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ज्ञातृव्यापारविचार:
"ज्ञातसम्बन्धस्यैकदेशदर्शनादसन्निकृष्टेऽर्थे बुद्धिः " [ शाबरभा० १|११५ ] इत्येवंलक्षणत्वात्तस्य । सम्बन्धश्च कार्य कारणभावादिनिराकरणेन नियमलक्षणोऽभ्युपगम्यते । तदुक्तम् - कार्यकारणभावादिसम्बन्धानां द्वयी गतिः । नियमानियमाभ्यां स्यादनियमादनङ्गता ॥ १ ॥ सर्वेऽप्यनियमा ह्येते नानुमोत्पत्तिकारणम् । नियमात्केवलादेव न किञ्चिन्नानुमीयते ॥ २ ॥ एवं परोक्तसम्बन्धप्रत्याख्याने कृते सति । नियमो नाम सम्बन्धः स्वमतेनोच्यतेऽधुना ॥ ३॥ [ इत्यादि ।
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होता है । मनोजन्य प्रत्यक्ष भी उस ज्ञातृव्यापार को ग्रहण नहीं करता है, क्योंकि न तो वैसी प्रतीति प्राती है और न आपने ऐसा माना है, तथा ऐसा मानने में प्रति प्रसंग दोष भी आता है । अनुमान के द्वारा ज्ञातृव्यापार को सिद्ध करो तो भी नहीं बनता, क्योंकि अनुमान का लक्षण - " ज्ञातसंबंध स्यैकदेशदर्शनादसन्निकृष्ट ऽर्थे बुद्धि:जिसने संबंध को जाना है ऐसे व्यक्ति को जब उसी विषय के एक देश का दर्शन होकर जो दूरवर्ती पदार्थ का ज्ञान होता है उसे अनुमान कहते हैं" ऐसा शावर भाष्य में लिखा है । आप प्रभाकर के द्वारा अनुमान में कार्यकारण संबंध और तादात्म्यादि संबंध माना नहीं गया है । केवल नियम अर्थात् अविनाभाव संबंध माना है । कहा भी है
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"कार्य कारण आदि जो संबंध होते हैं - वे दो प्रकार के होते हैं - एक नियमरूप और एक अनियमरूप, जो नियमरूप संबंध होता है वही अनुमान में कार्यकारी है, दूसरा नहीं ।। १ ।
अविनाभाव संबंध रहित हेतु अनुमान की उत्पत्ति में उपयोगी नहीं है, तथा नियम एक ही ऐसा है कि उससे ऐसा कोई पदार्थ ही नहीं जिसको कि इसके द्वारा न जाना जाय ।
इस प्रकार सौगत आदि के द्वारा माना गया संबंध खंडित किया जाने पर अब अपने (प्रभाकर) मत के अनुसार नियम संबंध बताया जाता है ॥ ॥ इत्यादि । इस प्रकार आपके मत में अनुमान में नियम संबंध को ही सही माना है यह बात सिद्ध हुई । अब यह देखना है कि ऐसा संबंध अर्थात् ज्ञाता के व्यापार के साथ अर्थप्रकाशन का अविनाभाव है इस बात का निर्णय अन्वय निश्चय के द्वारा होता है या व्यतिरेक निश्चय के द्वारा होता है ? यदि अन्वयनिश्चय के द्वारा होता है अर्थात्
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